Vatsavitri Festival Information In Hindi हॅलो ! आज की पोस्ट में हम वटसावित्री व्रत के बारे में जानकारी लेने वाले हैं । वटसावित्री व्रत हिंदू लोगों का प्रसिद्ध त्यौहार है । यह त्यौहार विवाहित महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण होता है । यह त्यौहार ज्येष्ठ मास के पूर्णिमा को मनाया जाता हैं । वटसावित्री व्रत के दिन विवाहित महिला अपने अखंड सौभाग्य और पती की लंबी आयु की कामना करती हैं । वटसावित्री का व्रत महाराष्ट्र , उत्तर भारत , दक्षिण भारत और गुजरात में मनाया जाता हैं ।
वटसावित्री त्यौहार कि पूरी जानकारी Vatsavitri Information In Hindi
वटवृक्ष बहोत ही पूजनीय माना जाता हैं । सभी विवाहित महिला बहोत ही श्रद्धा और भक्ती भाव से वटवृक्ष की पूजा करती हैं और अपने पती के दिर्घायू की कामना करती हैं । वटसावित्री व्रत को उत्तरप्रदेश , बिहार , राजस्थान , हरियाणा , मध्यप्रदेश , दिल्ली में ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता हैं और महाराष्ट्र , गुजरात और दक्षिण भारत के राज्यों में यह व्रत ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता हैं । इसे वटपूर्णिमा व्रत कहा जाता हैं । धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन सावित्री ने अपने पती सत्यवान के प्राण वापस लाने के लिए यमराज को विवश कर दिया था ।
वटसावित्री का त्यौहार क्यों मनाया जाता हैं –
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब सावित्री के पती के मृत्यु के बाद यमराज उसके प्राण लेकर जा रहे थे तब सावित्री अपने पती के प्राण वापस लाने के लिए यमराज के पीछे गई थी । इसके बाद यमराज ने सावित्री का अपने पती के लिए इतना लगाव देखकर सावित्री को कुछ सवाल पुछे ।
सावित्री ने यमराज से पुछे गए सवालों के सही जवाब दिये और सावित्री ने यमराज को अपने मृत पती को जिवीत करने के लिए मजबूर कर दिया । उस वक्त यमराज ने वटवृक्ष के नीचे ही सत्यवान के प्राण वापस दिये थे । इस तरह से वट सावित्री पूजन की परंपरा की शुरुआत हो गई ।
ऐसी मान्यता हैं की जब सावित्री अपने पती सत्यवान के प्राण वापस लाने के लिए यमराज के पिछे गई थी तब वटवृक्ष ने अपनी जटाओं से सावित्री के पती सत्यवान के मृत शरीर को छिपा लिया था । वटवृक्ष ने ऐसा किया था क्योंकी जंगली जानवर सत्यवान के शरीर को नुक्सान न पहुंचा सके । इस दिन से वटसावित्री का व्रत महिलाओं द्वारा किया जाता हैं ।
वटसावित्री का त्यौहार कैसे मनाया जाता हैं –
वटसावित्री के त्यौहार के दिन महिलाएं सबसे पहले स्नान करके सोलह श्रृंगार करके तैयार हो जाती हैं । इसके बाद घर के मंदिर में पूजा करती हैं । इसके बाद वटपूजन के सामग्री को एक थाली में सजाती हैं ।
इसके बाद गांव में कोई वटवृक्ष हो तो उस वटवृक्ष के नीचे जाकर वह अच्छी तरह से सफाई कर लेती है और सभी सामग्री एक जगह पर रख देती हैं । इसके बाद सबसे पहले महिलाएं सावित्री और सत्यवान की मूर्ती को स्थापित कर देती हैं । इसके बाद धूप , दीप , सिंदूर और रोली से पूजन करती हैं ।
इसके बाद महिलाओं द्वारा सावित्री और सत्यवान को लाल कपड़ा और फल अर्पित किये जाते हैं । इसके बाद महिलाएं बांस के पंखे से सावित्री और सत्यवान को हवा देती है । इसके बाद महिलाएं वटवृक्ष के पत्ते को अपने बालों में लगा देती हैं । इसके बाद महिलाएं एक धागा लेकर वटवृक्ष को बांधकर 5 , 11 , 21 , 51 या 108 बार परिक्रमा करती है ।
महिलाएं अपनी इच्छा के अनुसार कितनी भी परिक्रमा करती हैं । इसके बाद महिला सावित्री – सत्यवान की कथा पढ़ती हैं या पंडीत जी से सुनती हैं । इसके बाद महिलाएं जिस पंखे से सावित्री – सत्यवान को हवा दी थी उसी पंखे से अपने पती को हवा देती हैं और उनका आशीर्वाद लेती हैं । इसके बाद शाम के समय महिलाएं एक बार मीठा भोजन करती हैं और अपने पती के लंबी आयु के लिए कामना करती हैं ।
वटसावित्री के पूजा के लिए सामग्री –
वटसावित्री व्रत के लिए चावल , लाल कपड़ा , रोली , कच्चा सूत , श्रृंगार की वस्तुएं , नारियल , बांस का पंखा , कलावा , जल से भरा हुआ लोटा , भीगे हुए चने , पान , पुष्प , सुपारी , धूप , पांच तरह के फल , मिट्टी का दिपक , घर के बने हुए पकवान इस सामग्री की जरूरत होती हैं ।
वटसावित्री व्रत का महत्व –
ऐसी मान्यता हैं की वटवृक्ष के मूलभाग में भगवान ब्रम्हा , मध्य में विष्णु और अग्रभाग में भोलेनाथ का वास होता हैं । जो महिला वटसावित्री व्रत के दिन वटवृक्ष की पूजा करती हैं उस महिला को अखंड सौभाग्य और सुख – समृद्धी की प्राप्ती होती हैं । वटवृक्ष को ज्ञान , निर्वाण और दिर्घायु का पूरक भी माना जाता हैं ।
जो महिला वटसावित्री व्रत के दिन वटवृक्ष की पूजा करती हैं उसके सारे कष्ट दूर होते हैं । वटसावित्री का व्रत रखने से पती – पत्नी के बीच का प्रेम बढ़ता है । वटवृक्ष में कई रोगों का नाश करने की भी क्षमता है । इस दिन जो महिला व्रत के साथ मौन धारण करती हैं उसे हजारों गौओं के दान जितना पूण्य मिलता हैं । वटसावित्री व्रत को संतान की प्राप्ती में सहायता देने वाला व्रत भी माना जाता हैं ।
यह व्रत करने से हमसे गलती से हुए पाप भी नष्ट हो जाते हैं । इस दिन गंगा स्नान करने से मनोकामना पूरी हो जाती हैं । इसलिए इस दिन से लोग गंगा नदी का पानी लेकर अमरनाथ यात्रा के लिए जाते हैं । वटवृक्ष की जटा निचे की तरफ लटकती हैं इसे सावित्री माता माना जाता हैं । वटवृक्ष के नीचे बैठकर पूजा करने से और व्रत कथा सुनने से मनोकामना पूरी होती हैं ।
वटवृक्ष का पेड़ आसपास न हो तो कैसे पूजा करें –
अगर आप जिस गांव या शहर में रहती हैं उधर वटवृक्ष का पेड़ उपलब्ध न हो तो आप वटवृक्ष की टहनी की पूजा कर सकते हैं । वटसावित्री व्रत के कुछ दिन पहले वटवृक्ष की टहनीयां बाजार में विक्री के लिए आती हैं । आप उसमें से एक टहनी लेकर उसे घर में एक कलश में मिट्टी में रखकर उसकी विधी – विधान से पूजा कर सकती हो ।
इसके अलावा कुछ क्षेत्रों में वटवृक्ष उपलब्ध नहीं हो तो अलग तरीके से पूजा की जाती हैं । इस दिन जिस महिला को वटवृक्ष नहीं मिलता वह महिलाएं तुलसी के पौधे की पूजा करती हैं । तुलसी का पौधा लगभग हर घर में उपलब्ध होता हैं । अगर तुलसी का पौधा भी उपलब्ध नहीं हो तो महिलाएं कलश स्थापना करके भी वटसावित्री का व्रत करती हैं ।
अगर आप सभी देवी – देवताओं को आव्हान करके कलश स्थापना करेगी तो सभी देवी – देवता उस कलश में स्थापित हो जायेंगे । कलश स्थापना करते वक्त भगवान विष्णु , भगवान ब्रम्हा , सरस्वती माता , सत्यवान और सावित्री को आव्हान करके कलश स्थापना करनी चाहिए । इसके बाद कलश की विधी – विधान से पूजा करनी चाहिए ।
इस पोस्ट में हमने वटसावित्री व्रत के बारे में जानकारी ली । हमारी पोस्ट जरूर शेयर किजीए । धन्यवाद !
यह लेख अवश्य पढ़े –
वट सावित्री पूजा का क्या महत्व है?
यह व्रत सावित्री से जुड़ी है, जिन्होंने मृत्यु के देवता यमराज के चंगुल से अपने पति सत्यवान की जान बचाई थी
वट सावित्री व्रत की पूजा कैसे होती है?
वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिन महिलाएं सूर्योदय से पूर्व उठें।
स्नान आदि करने के बाद नए वस्त्र धारण करें। …
बरगद की पेड़ की जड़ को जल अर्पित करें। …
वट सावित्री व्रत कथा पढ़ें या सुनें।
वट वृक्ष के चारों ओर लाल या पीला धागा बांधकर वृक्ष की परिक्रमा करें।
परिक्रमा के समय पति की लंबी आयु की कामना करें।
वट सावित्री में क्या खाएं क्या ना खाएं?
आम के मुरब्बे में आम और चीनी या गुड का इस्तेमाल होता है। जिसे आप फलाहार के रूप में खा सकते हैं। शास्त्रों के अनुसार, वट सावित्री व्रत के दिन पूजा करने के बाद आप अनाज का सेवन भी कर सकते हैं। इस दिन पूजा में चढ़ाई चीजें जैसे चना, पूड़ी, पुआ आदि चीजों का सेवन कर सकती हैं।
वट सावित्री व्रत में क्या नहीं करना चाहिए?
महिलाओं को सफेद, काले और नीले रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिए। 2. वट सावित्री के दिन विधवा महिलाओं को वस्त्र दान करने से बचना चाहिए।