Sant Meerabai Biography In Hindi श्री कृष्ण की दीवानी के रूप में मीराबाई को कौन नहीं जानता। मीराबाई एक मशहूर संत होने के साथ-साथ हिन्दू आध्यात्मिक कवियित्री और भगवान कृष्णा की भक्त थी। वे श्री कृष्ण की भक्ति और उनके प्रेम में इस कदर डूबी रहती थी कि दुनिया उन्हें श्री कृष्ण की दीवानी के रुप में जानती है।
संत मीराबाई का जीवन परिचय Sant Meerabai Biography In Hindi
बचपन :-
कृष्णभक्त मीराबाई (Meera Bai) का जन्म मेड़ता (राजस्थान) के राठौड़ राजा रावदूदा के पुत्र रतनसिंह के घर गाँव “कुडकी” में 1498 में हुआ और उनका विवाह 1516 में राणा सांगा के जयेष्ट पुत्र युवराज भोजराज के साथ हुआ था।
मीराबाई के विवाह के सात वर्ष के पश्चात ही युवराज भोजराज की मृत्यु हो गयी तथा मीराबाई युवावस्था में ही विधवा हो गयी। मीराबाई बचपन से ही कृष्ण-भक्त थी। उनका अधिकाँश समय भजन-कीर्तन में ही व्यतीत होता था। भगवान कृष्ण के रूप का वर्णन करते हुए संत मीराबाई हजारो भक्तिमय कविताओ की रचना की है। संत मीरा बाई की श्री कृष्ण के प्रति उनका प्रेम और भक्ति, उनके द्वारा रचित कविताओं के पदों और छंदों मे साफ़ देखने को मिलती है। वहीं श्री कृष्ण के लिए मीरा बाई ने कहा है।
प्रारंभिक जीवन :-
महान कृष्ण भक्त और कवयित्री मीरा बाई जी का जन्म 1498 के आसपास राजस्थान के चौकड़ी नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम रत्न सिंह था। इनका जन्म राठौर राजपूत परिवार में हुआ था। बचपन से ही मीरा कृष्ण की भक्ति में डूबी हुई थी। जब ये थोड़ी बड़ी हुईं तो इनका विवाह उदयपुर के महाराणा कुंवर भोजराज के साथ करा दिया गया। भोजराज, मेवाड़ के महाराणा सांगा के बेटे थे। विवाह के कुछ दिन बाद ही भोजराज का स्वर्गवास हो गया।
भोजराज की मृत्यु के कुछ साल बाद मीरा बाई के पिता और ससुर की बाबर की इस्लामिक सेना के साथ युद्ध करते – करते मृत्यु हो गयी। ससुर की मृत्यु के बाद विक्रम सिंह मेवाड़ के शासक बने। पति की मृत्यु होने पर लोगों ने उन्हें सती होने को कहा लेकिन वे नहीं मानी। उनके ससुराल वाले उन्हें बहुत परेशान करने लगे। वे मीरा को घर से निकालने के प्रयत्न करते थे। उनका जीवन अस्त-व्यस्त होने लगा।
मीराबाई का जन्म, परिवार एवं प्रारंभिक जीवन :-
कृष्ण की सबसे बड़ी साधक एवं महान अध्यात्मिक कवियत्री मीराबाई जी के जन्म के बारे में कोई भी पुख्ता जानकारी नहीं है, लेकिन कुछ विद्धानों के मुताबिक उनका जन्म 1498 ईसवी में राजस्थान के जोधपुर जिले के बाद कुडकी गांव में रहने वाले एक राजघराने में हुआ था। इनके पिता का नाम रत्नसिंह था, जो कि एक छोटे से राजपूत रियासत के राजा थे।
मीराबाई जी जब बेहद छोटी थी तभी उनके सिर से माता का साया उठ गया था, जिसके बाद उनकी परवरिश उनके दादा राव दूदा जी ने की थी, वे एक धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे, जो कि भगवान विष्णु के घोर साधक थे। वहीं मीराबाई पर अपने दादा जी का गहरा असर पड़ा था। मीराबाई बचपन से ही श्री कृष्ण की भक्ति में रंग गई थीं।
मीरा बाई की रचनायें :-
मीरा बाई जी को भक्ति काल की कवयित्री माना जाता है। कृष्ण भगवान की भक्ति में लीन होकर इन्होने अपनी कविताओं की रचना की है। वे कृष्ण भगवान की भक्ति में इतना डूब चुकी थी कि गोपियों की तरह कृष्ण भगवान को अपना पति मान बैठीं थीं । इनकी रचनाओं में सरलता, सहजता और आत्मसमर्पण का भाव दिखाई देता है। इनके द्वारा रचित पदों में विविधता देखने को मिलती है।
इन्होने कहीं-कहीं राजस्थानी भाषा का प्रयोग किया है तो कहीं शुद्ध ब्रज भाषा का प्रयोग। कहीं – कहीं गुजरती पूर्वी हिंदी का प्रयोग किया है जिस बजह से इन्हे गुजरती कवयित्री भी कहा जाता है। मीरा बाई जी ने कविताओं के रूप में पदों की रचना की है।