Subhadra Kumari Chauhan Biography In Hindi सुभद्रा कुमारी चौहान की ‘खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी’ कविता की चार पंक्तियों से पूरा देश आजादी की लड़ाई के लिए उद्वेलित हो गया था। ऐसे कई रचनाकार हुए हैं जिनकी एक ही रचना इतनी ज़्यादा लोकप्रिय हुई कि उसकी आगे की दूसरी रचनाएँ गौण हो गईं, जिनमें सुभद्राकुमारी भी एक हैं। उन्होंने ज्यादा कुछ नहीं लिखा है।
उनकी एक ही कविता ‘झाँसी की रानी’ लोगों के कंठ का हार बन गई है। एक इसी कविता के बल पर वे हिंदी साहित्य में अमर हो गई हैं।सुभद्रा कुमारी चौहान जी हिन्दी साहित्य की प्रसिद्ध भारतीय कवियित्री और प्रतिष्ठित लेखिका थी। जिन्होंने अपने लेखों का भावनात्मक प्रभाव लोगों पर छोड़ा था। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से न सिर्फ लोगों के अंदर राष्ट्र प्रेम की भावना विकसित की थी, बल्कि महिलाओं के दर्द एवं समाज के कई ज्वलंतशील मुद्दों को भी काफी अच्छे ढंग से प्रदर्शित किया था।
सुभद्राकुमारी चौहान जीवनी – Subhadra Kumari Chauhan Biography In Hindi
शुरुआती जीवन एवं शिक्षा :-
उनका जन्म नागपंचमी के दिन इलाहाबाद के निकट निहालपुर नामक गांव में रामनाथसिंह के जमींदार परिवार में हुआ था। बाल्यकाल से ही वे कविताएँ रचने लगी थीं। उनकी रचनाएँ राष्ट्रीयता की भावना से परिपूर्ण हैं। सुभद्रा कुमारी चौहान, चार बहने और दो भाई थे। उनके पिता ठाकुर रामनाथ सिंह शिक्षा के प्रेमी थे और उन्हीं की देख-रेख में उनकी प्रारम्भिक शिक्षा भी हुई। 1921 में खंडवा के ठाकुर लक्ष्मण सिंह के साथ विवाह के बाद वे जबलपुर आ गई थीं। उनके पिता रामनाथ सिंह जी ने शिक्षा को बढावा देने वाले एक सम्मानीय व्यक्ति थे, इसलिए उन्होंने अपनी बेटी सुभद्रा जी की शिक्षा दिलवाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी। सुभद्रा जी की शुरुआती शिक्षा उनके पिता के ही देखरेख में हुई थी।
1991 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली वह प्रथम महिला थीं। वे दो बार जेल भी गई थीं। सुभद्रा कुमारी चौहान की जीवनी, इनकी पुत्री, सुधा चौहान ने ‘मिला तेज से तेज’ नामक पुस्तक में लिखी है। इसे हंस प्रकाशन, इलाहाबाद ने प्रकाशित किया है। वे एक रचनाकार होने के साथ-साथ स्वाधीनता संग्राम की सेनानी भी थीं। डॉ. मंगला अनुजा की पुस्तक सुभद्रा कुमारी चौहान उनके साहित्यिक व स्वाधीनता संघर्ष के जीवन पर प्रकाश डालती है।
प्रमुख कृतियां एवं रचनाएं :-
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। . .
परिमलहीन पराग दाग-सा बना पड़ा है
हा ! यह प्यारा बाग खून से सना पड़ा है।
आओ प्रिय ऋतुराज? किंतु धीरे से आना
यह है शोक-स्थान यहाँ मत शोर मचाना।
कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा-खाकर
कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर।
पुरूस्कार और सम्मान
सुभद्राकुमारी चौहान के सम्मान मे भारतीय तटरक्षक सेना ने 28 अप्रैल 2006 को राष्ट्रप्रेम लिए नए नियुक्त एक तटरक्षक जहाज़ को सुभद्रा कुमारी चौहान का नाम दिया है। भारतीय डाकतार विभाग ने 6 अगस्त 1976 को सुभद्रा कुमारी चौहान के सम्मान में 25 पैसे का एक डाक-टिकट जारी किया है। उनकी कहानियों में देश-प्रेम के साथ-साथ समाज की विद्रूपता, अपने को प्रतिष्ठित करने के लिए संघर्षरत नारी की पीड़ा और विद्रोह का स्वर देखने को मिलता है।