षटतिला एकादशी के बारे में जानकारी Shattila Ekadashi Information In Hindi

Shattila Ekadashi Information In Hindi हॅलो ! हम इस पोस्ट में षटतिला एकादशी के बारे में जानकारी लेने वाले हैं । षटतिला एकादशी का व्रत माघ कृष्ण पक्ष एकादशी को किया जाता हैं । इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती हैं । षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु को तिल चढाये जाते हैं और खिचडी का भोग लगाया जाता हैं । ऐसी मान्यता हैं की इस दिन तिल का दान करना स्वर्ण दान करने के बराबर ही होता हैं । ऐसी मान्यता हैं की ऐसा करने से भगवान विष्णु की कृपा होती हैं और मनोकामना पूरी होती हैं । इस दिन शरीर पर तिल के तेल से मालिश , जल में तिल डालकर स्नान , तिल को जल में डालकर पिना‌ और तिल के पकवान खाने का विशेष महत्व होता हैं । इस दिन पंचामृत में तिल मिलाकर भगवान को स्नान कराना भी अच्छा माना जाता हैं । इस दिन तिलों का हवन किया जाता हैं और रात को जागरण किया जाता हैं । इस दिन पदार्थ में तिल मिलाकर खुद भी खाने चाहिए और ब्राम्हण को भी खिलाने चाहिए ।

Shattila Ekadashi Information In Hindi

षटतिला एकादशी के बारे में जानकारी Shattila Ekadashi Information In Hindi

षटतिला एकादशी व्रत पूजा विधि –

षटतिला एकादशी व्रत के दिन सुबह जल्दी उठना चाहिए और स्नान करना चाहिए । इसके बाद पूजा की जगह को अच्छी तरह से साफ करनी चाहिए । इसकी बाद भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण की मूर्ती या प्रतिमा को स्थापित करना चाहिए । इसके बाद विधि – विधान से पूजा करनी चाहिए ।

पूजा के दौरान भगवान विष्णु के सहस्त्रनाम का पाठ और कृष्ण का भजन जरूर करना चाहिए । इसके बाद भगवान को फल , नारियल , अगरबत्ती , फूल ,तुलसी जल और प्रसाद जरूर अर्पित करें । अगले दिन सुबह द्वादशी को पूजा के बाद भोजन करें और षडतिला एकादशी व्रत का पारण करें ।

षडतिला एकादशी व्रत कथा –

1 ) पौराणिक कथाके अनुसार , एक महिला के पास बहोत संपत्ती थी । वह महिला गरीब लोगों को बहोत दान करती थी । वह जिस व्यक्ती को ज्यादा जरुरत हो उसे ज्यादा दान करती थी । लेकिन गरीबों को कभी भी भोजन नहीं कराती थी । ऐसी मान्यता हैं की सभी उपहार और दान में सबसे महत्वपूर्ण भोजन का दान होता हैं । क्योंकी भोजन का दान व्यक्ती को महान गुण प्रदान करता हैं । भगवान कृष्ण ने यह देखकर , यह बात उस महिला को बताने का फैसला किया । भगवान कृष्ण उस महिला के सामने भिखारी के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने उस महिला के पास भोजन मांगा ।

लेकिन उस महिला ने दान में भोजन देने से इनकार कर दिया । उस महिला ने भगवान को गरिब समझकर भगा दिया । वह भिखारी बार – बार खाना मांगता रहा । इसके बाद महिला ने भगवान कृष्ण जो भिखारी के रूप में थे उनका अपमान किया और उन्हें भोजन देने के बजाय भीख की कटोरी में मिट्टी की गेंद डाल दी । यह देखकर उस भिखारी ने महिला को धन्यवाद दिया और वहां से निकल गया ‌।

इसके बाद महिला अपने घर वापस आ गई और घर में जो खाना था वह मिट्टी में परिवर्तित हुआ था । यह देखकर वह महिला हैरान हो गई । उस महिला ने जो भी चीजे खरीदी थी वह भी मिट्टी में परिवर्तित हो गई । भुख के कारण उस महिला का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा । इस सबसे बचाव के लिए उस महिला ने भगवान से प्रार्थना की ।

महिला की बात सुनकर भगवान कृष्ण उस महिला के सपने में प्रकट हुए और भगवान कृष्ण ने उस महिला को उस दिन की याद दिलाई जब उसने उस भिखारी को भगा दिया था और उस महिला ने अपने कटोरी में भोजन डालने के बजाय मिट्टी डालकर उसका अपमान किया था ‌। भगवान कृष्ण ने उस महिला को समझाया की इस तरह के काम करने से उसने अपने दुर्भाग्य को आमंत्रित किया और इस वजह से उसके जीवन में ऐसी परिस्थितीयां आ गई हैं ।

भगवान कृष्ण ने उस महिला को षटतिला एकादशी के दिन गरीबों को और जरूरतमंदों को भोजन दान करने की सलाह दी और व्रत रखने को भी कहा । जैसे भगवान कृष्ण ने कहा उस तरह से महिला ने इस व्रत का पालन किया और जरूरतमंद और गरीबों को बहोत सारा भोजन दान किया । इसके बाद इसके परिणामस्वरूप उस महिला को सभी सुखों की प्राप्ती हुई ।

2 ) नारदमुनी त्रिलोक भ्रमण करते हुए भगवान विष्णु के धाम वैकुण्ठ पहुंचे । वहां उन्होंने वैकुण्ठ पती को प्रणाम किया और पुछा की षटतिला एकादशी की कथा क्या हैं और यह व्रत करने से क्या पुण्य मिलता हैं । भगवान विष्णु ने जवाब दिया की प्राचीन काल में पृथ्वी पर एक ब्राम्हणी रहती थी । वह ब्राम्हणी मुझमें बहोत श्रद्धा और भक्ती रखती थी ।

वह स्त्री मेरे सभी व्रत करती थी । एक बार इस स्त्री ने एक महिना मेरा व्रत रखकर मेरी आराधना की । व्रत के प्रभाव से उस स्त्री का शरीर शुद्ध हो गया लेकिन यह स्त्री कभी ब्राम्हण और देवताओं को अन्नदान नहीं करती थी । एक दिन मैं खुद उसके पास भिक्षा लेने पहुंच गया ।

जब मैंने उस स्त्री से भिक्षा की याचना की तब उसने एक मिट्टी का पिंड उठाकर मेरे हाथों पर रख दिया । मैं वह पिंड लेकर अपने धाम वापस लौट आया । कुछ दिनों बाद वह स्त्री भी देह त्याग करके मेरे लोक में आ गई । यहां उसे एक कुटिया और एक आम का पेड़ मिला ।

खाली कुटिया देखकर वह स्त्री घबराकर मेरे पास आ गई और बोली की मैं तो धर्मपरायण हूं फिर मुझे खाली कुटिया क्यों मिली । तब मैंने उसे बताया की यह अन्नदान नहीं करने और मुझे मिट्टी का पिंड देने के कारण हुआ हैं । मैंने उस स्त्री को बताया की जब देव कन्याएं आपसे मिलने आए तब आप अपना द्वार तभी खोलना जब वे आपको षटतिला एकादशी के व्रत का विधान बताएं ।

उस स्त्री ने ऐसा ही किया जिस विधियों को देवकन्याओं ने कहा उस विधि से उसने षटतिला एकादशी का व्रत किया । व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया अन्नधन से भर गई । इसलिए हे नारद इस बात को सत्य मानो की जो व्यक्ती इस एकादशी का व्रत करता हैं और तिल और अन्नदान करता हैं उसे मुक्ती और वैभव की प्राप्ती होती हैं और हमारे शास्त्रों में कहीं भी व्रत करने का प्रावधान नहीं हैं ।

इस पोस्ट में हमने षटतिला एकादशी व्रत के बारे में जानकारी ली । हमारी पोस्ट शेयर जरुर किजीए ‌। धन्यवाद !

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षटतिला एकादशी क्यों मनाई जाती है?

धर्म ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि भगवान विष्णु ने नारद मुनि को षटतिला एकादशी व्रत का महत्व बताया था. पौराणिक कथा के अनुसार, पृथ्वी पर एक ब्राह्मण की पत्नी के पति की मृत्यु हो चुकी थी. वह भगवान विष्णु की अन्नय भक्त थी और भक्तिभाव से उनकी पूजा करती थी. वह हर माह भगवान विष्णु का व्रत रखती थी.

षटतिला एकादशी को क्या खाना चाहिए?

षटतिला एकादशी के दिन तिल का विशेष महत्व होता है. इस दिन 6 तरह से तिलों का उपयोग किया जाता है. इसमें तिल से स्नान, तिल का उबटन लगाना, तिल से हवन, तिल से तर्पण, तिल का भोजन और तिलों का दान किया जाता है. इस दिन तिल का 6 तरीके से उपयोग किए जाने पर ही इसे षटतिला एकादशी व्रत कहा जाता है.

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