‘भारत के एडिसन’ शंकर आबाजी भिसे की जीवनी Shankar Abaji Bhise Biography In Hindi

Shankar Abaji Bhise Biography In Hindi एक हजार 13 अनुसन्धान कार्य करके उनके पेटंट प्राप्त करनेवाले महान शास्त्रज्ञ के रूप में थॉमस आल्वा एडिसन का नाम मानवी इतिहास में दर्ज़ किया गया है उन्हीं के समकालीन माने जानेवाले एक भारतीय संशोधनकर्ता को पश्चिमी दुनिया के शास्त्रज्ञ ‘भारत के एडिसन’ कहते थे। इसी वक्तव्य के आधार पर हम इस भारतीय शास्त्रज्ञ के महानता का अंदाज़ा लगा सकते हैं।

Shankar Abaji Bhise Biography In Hindi

‘भारत के एडिसन’ शंकर आबाजी भिसे की जीवनी Shankar Abaji Bhise Biography In Hindi

ये महान शास्त्रज्ञ हैं, शंकर आबाजी भिसेजी। आधुनिक विज्ञान की परंपरा का कोई भी आधार न होते हुए भी भिसे जी के द्वारा विज्ञान क्षेत्र में दिए गए योगदान की कोई बराबरी नहीं कर सकता है। यही बात उन्हें ‘भारत के एडिसन’ की उपाधि दिलवाने में सहायक सिद्ध हुई। यह उपाधि देनेवाले लोग शास्त्रीय संशोधन में अपने जीवन को अर्पित कर देनेवाले विशेष लोग थे।

शास्त्रीय संशोधन की चाह एवं प्रयोगशीलता के जोर पर जग-मान्यता प्राप्त करनेवाले भारतीय संशोधनकर्ता के रूप में शंकर आबाजी भिसे जी प्रसिद्ध हैं। मुंबई में 1867 में जन्म लेनेवाले शंकर भिसे जी की स्कूली शिक्षा कल्याण, जलगाँव, धुले, पुने इस प्रकार के विभिन्न स्थानों पर हुई। उन्हें बचपन से ही शास्त्रीय विषयों की चाह थी। उम्र के इक्कीसवे वर्ष ही वे ‘ऑडिटर जनरल’ कार्यालय में नौकरी हेतु कार्यरत हो गए। नौकरी करते हुए ही वे शास्त्रीय ज्ञान पर आधारित मनोरंजक कार्यक्रम भी करते थे।

शंकर भिसे जी ने शास्त्रीय ज्ञान का प्रचार करने के लिए 1893 में ‘द सायंटिफिक क्लब’ नामक संस्था की स्थापना की, इसके पश्‍चात् दूसरे वर्ष ही ‘विविध कलासंग्रह’ नामक मासिक शुरु कर दिया। 1890 से पाँच-छ: वर्षों तक वे ‘आग्रा लेदर्स वर्क्स’ के संचालक पद पर आसीन रहे।

दादाभाई नौरोजी ने भिसे जी की इंग्लैड जाने के लिए मदद की। ब्रिटन में उन्होंने विज्ञापन दिखानेवाले यंत्र, स्वयंचलित वजन वितरण, दर्ज़ करनेवाले यंत्रों आदि से संबंधित संशोधन किये। 1897 में लंडन में होनेवाली सोसायटी ऑफ सायन्स, लेटर्स अ‍ॅण्ड आटर्स् नामक इस संस्था ने स्वयंमापक यंत्र निर्माण प्रतियोगिता में भाग लेकर उसमें पुरस्कार भी प्राप्त किया।

उनमें होनेवाली इस बुद्धिमत्ता पर गौर करते हुए भिसे जी को उस संस्था का सम्माननीय सदस्यत्व प्रदान किया गया। इसके दो तीन वर्षों के पश्‍चात् शंकर भिसे जी ने मुद्रण व्यवसाय के यंत्रसामग्री के प्रति अपना ध्यान केन्द्रित किया। उस काल में प्रचलित होनेवाले लायनो, मोनो इस प्रकार के यंत्रों की रचना पर ध्यान केन्द्रित कर उन्होंने प्रति मिनट लगभग 1200 विविध प्रकार के छपाई के चिह्न अंकित करनेवाले ‘गुणित मातृका’ नामक यंत्र की खोज़ की। संशोधन के पश्‍चात् 1916 में उन्होंने उसे बाजारों में उपलब्ध कर दिया।

इसके पश्‍चात् 1916 में शंकर भिसे जी अमेरिका गए। अमेरिका के यूनिव्हर्सल टाईप मशीन कंपनी की दरख्वास्त के के अनुसार ‘आयडियल टाईप कास्टर’ नामक यंत्र की खोज़ की अमेरिका में उनका पेटंट ले लिया गया। उत्पादन हेतु भिसे ने आयडियल टाईप कास्टर कार्पोरेशन कंपनी की स्थापना करके 1921 में प्रथम यंत्र बिक्री के लिए उपलब्ध किया। इस दौरान भिसे जी स्वयं बीमार पड़ गए।

उस बीमारी की ही अवस्था में उन्होंने जो औषधी ली थी उनमें से एक भारतीय औषधि गुणकारी साबित हुई कौतुहल पूर्वक उन्होंने उस औषधि का रासायनिक पृथक्करण करवा लिया। औषधि का गुणकारी रूप आयोडिन के कारण ही है यह जानने पर भिसे ने स्वयं नयी औषधि विकसित करने का निश्‍चय किया। ‘ऑटोमिडीन’ नामक यह औषधि प्रथम विश्‍वयुग के समय अमेरिकन सैनिकों के लिए काफ़ी बड़े प्रमाण में उपयुक्त साबित हुई थी।

आयुर्वेद में मूलत: मानी जानेवाली अनगिनत औषधियाँ एवं उपचार इनकी जानकारी भारत में हजारों वर्षों से परंपरागत पिढ़ी दर पिढ़ी चलती चली आ रही थी। परन्तु बदकिस्मती से दुनिया ने उसे दर्ज़ भी नहीं किया गया था और ना ही उसकी शास्त्रीय चिकित्सा हुई थी। संशोधन न होने के कारण इसके परंपरागत ज्ञान का विकास नहीं हुआ और इसी कारण पश्चिमी देशों ने इसे अनदेखा कर दिया।

भारत को स्वातंत्र्य मिलने पर हलदी के समान पारंपारिक औषधि के हक के लिए दशकों संघर्ष करना पड़ा। उस पार्श्‍वभूमि पर भिसे जी ने बीसवी सदी के आरंभिक काल में अमेरिका में ही प्राचीन भारतीय ज्ञान का उपयोग करके विकसित की गयी औषधि की खोज यह काफ़ी सराहनीय है। इस प्रकार की संशोधक, चिकित्सकवृत्ति भारतीयों ने अपने में आत्मसात कर रखी होती तो आज हलदी से लेकर अन्य अनेक भारतीय उपचार पद्धति के पेटंट के लिए वैश्‍विक धरातल पर संघर्ष नहीं करना पड़ता। उलटे इस पर भारत का अपना अधिकार साबित होता।

विद्युतशास्त्र में भी भिसे जी ने अनेक वस्तुओं को लेकर संशोधन किए। वातावरण में होनेवाले विविध प्रकार की वायुओं का पृथक्करण करनेवाले यंत्र, अनेक विज्ञापनों का एकत्रित दर्शन करनेवाला लैम्प (दीपक) सागर की गहराई से प्रकाशझोत छोड़नेवाला दीपक इस प्रकार की विभिन्न वस्तुओं को उन्होंने विकसित किया। अपने जीवन के अंतिम काल में वे अध्यात्म की दिशा में मुड़ गए।

शांति, एकता का अहसास जैसे अध्यात्मिक तत्त्वों से प्रेरित होकर उन्होंने अमेरिका के लोटस फिलॉसॉफी सेंटर की स्थापना भी की थी। अमेरिका में हर साल विविध क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्यकारी करनेवाले मान्यवर व्यक्तियों का समावेश ‘हूज हू’ नामक इस विशेष प्रकाशन में किया जाता है। बीसवी सदी के आरंभ में ही ऐसे प्रतिष्ठित ‘हूज हू’ में समाविष्ट होनेवाले प्रथम भारतीय व्यक्ति का गौरव शंकर भिसे जी ने प्राप्त किया।

मुद्रण यंत्र के (प्रीटींग) विशेष कारीगिरी के प्रति ही उन्हें यह सम्मान दिया गया था। विदेश में रहते हुए भी यांत्रिक ज्ञान, यंत्रविद्या, विज्ञान इस प्रकार के अनेक विषयों पर उन्होंने नियतकालिकों के माध्यम से लेखन किया। अमेरिका में निवास करनेवाले शंकर भिसे जी का न्यूयार्क शहर में 5 अप्रैल, 1935 के दिन देहान्त हो गया।

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