Vikram Sarabhai Biography In Hindi फादली को भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का पिता कहा जाता है, विक्रम साराभाई अपने समय से बहुत आगे थे। भारत में एक धनी व्यापारी परिवार में जन्मे, उन्होंने एक विशेषाधिकार प्राप्त बचपन का आनंद लिया और सभी शिक्षाओं को आगे बढ़ाने का साधन चाहते थे। कम उम्र से ही साराभाई ने विज्ञान और गणित में गहरी रुचि विकसित की। वह बहुत जिज्ञासु बच्चा था जिसे जीवन का पता लगाना बहुत पसंद था। भारत से अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद वे आगे की पढ़ाई के लिए विदेश चले गए।
डॉ. विक्रम साराभाई की जीवनी Scientist Vikram Sarabhai Biography In Hindi
विक्रम अम्बालाल साराभाई एक भारतीय वैज्ञानिक और खोजकर्ता थे जो ज्यादातर “भारतीय अंतरिक्ष प्रोग्राम” के जनक के नाम से जाने जाते है। Scientist Vikram Sarabhai को 1962 में शांति स्वरुप भटनागर मैडल भी दिया गया। देश ने उन्हें 1966 में पद्म भुषण और 1972 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया था। विक्रम साराभाई एक ऐसा नाम है, जिसे भारतीय अंतरिक्ष के प्रत्येक कार्यक्रमों में जनक की उपाधि दी गई है।
जन्म एवं परिवार :-
डॉक्टर विक्रम साराभाई ने अहमदाबाद की धरती पर जन्म लिया, वह तिथि सन 1919 में अगस्त महीने की 12 तारीख थी। साराभाई का जन्म उद्योगपतियों के परिवार में हुआ था। उन्होंने गुजरात कॉलेज, अहमदाबाद में भाग लिया, लेकिन बाद में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, इंग्लैंड में स्थानांतरित हो गए, जहाँ उन्होंने 1940 में प्राकृतिक विज्ञान में अपना प्रशिक्षण लिया। द्वितीय विश्व युद्ध ने उन्हें भारत लौटने के लिए मजबूर किया, जहाँ उन्होंने धर्मनिरपेक्ष सर चंद्रशेखर के नेतृत्व में ब्रह्मांडीय किरणों में शोध किया।
वेंकट रमन भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर (बेंगलुरु) में। 1945 में डॉक्टरेट की पढ़ाई करने के लिए वे कैम्ब्रिज लौट आए और उन्होंने 1947 में एक थीसिस लिखी, “कॉस्मिक रे इंवेस्टीगेशन इन ट्रॉपिकल लेटिट्यूड्स”, उन्होंने भारत लौटने पर अहमदाबाद में भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला की स्थापना की।
शुरूआती जीवन एवं शिक्षा :-
बचपन से ही विज्ञान के प्रति उनका लगाव बहुत अधिक था, जिसने बाद में ऐसा रुप लिया कि वे भारत के महान वैज्ञानिक के रूप में उभर कर आए. विक्रम साराभाई ने अपनी शिक्षा भारत में ही रह कर नहीं बल्कि विदेशों में भी जाकर पूरी की. इंग्लैंड जाके के बाद सन् 1947 में विक्रम फिर स्वतंत्र भारत में लौट आये। और अपने देश की जरुरतो को देखने लगे, उन्होंने अपने परीवार द्वारा स्थापित समाजसेवी संस्थाओ को भी चलाना शुरू किया।
अहमदाबाद के ही नजदीक अपनी एक अनुसन्धान संस्था का निर्माण किया। 1940 में उन्होंने प्राकृतिक विज्ञान में ट्राइपोज डिग्री प्राप्त की। द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने पर वे भारत लौट आए और बंगलौर स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान में कार्य करने लगे जहां वह सी. वी. रामन के निरीक्षण में ब्रहांडीय विकिरणों पर अनुसंधान करने लगे।
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक :-
उन्होंने अपना पहला अनुसंधान लेख ”टाइम डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ कास्मिक रेज़” भारतीय विज्ञान अकादमी की पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। वर्ष 1940-45 की अवधि के दौरान कॉस्मिक रेज़ पर साराभाई के अनुसंधान कार्य में बंगलौर और कश्मीर-हिमालय में उच्च स्तरीय केन्द्र के गेइजर-मूलर गणकों पर कॉस्मिक रेज़ के समय-रूपांतरणों का अध्ययन शामिल था।
केम्ब्रिज से 1947 में आज़ाद भारत में वापसी के बाद उन्होंने अपने परिवार और मित्रों द्वारा नियंत्रित धर्मार्थ न्यासों को अपने निवास के पास अहमदाबाद में अनुसंधान संस्थान को धन देने के लिए राज़ी किया। इस प्रकार 11 नवम्बर, 1947 को अहमदाबाद में विक्रम साराभाई ने ‘भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला’ (पीआरएल) की स्थापना की। उस समय उनकी उम्र केवल 28 वर्ष थी।
विक्रम साराभाई की मृत्यु :-
Dr Vikram Sarabhai की मृत्यु 30 दिसंबर 1971 को केरला के थिरुअनंतपुरम के कोवलम में हुआ था। वे थुम्बा रेलवे स्टेशन पर आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित होने के लिये थिरुअनंतपुरम गये थे। उनके अंतिम दिनों में, वे काफी मुश्किलो में थे। अंतिम दिनों में ज्यादा यात्राये और काम के बोझ की वजह से उनकी सेहत थोड़ी ख़राब हो गयी थी। और इसी वजह को उनकी मृत्यु का कारण भी बताया जाता है।
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विक्रम साराभाई ने क्या खोजा?
विक्रम साराभाई ने सौर तथा अंतरग्रहीय भौतिकी में अनुसंधान के नए क्षेत्रों के सुअवसरों की कल्पना की थी। वर्ष 1957-1958 को अंतर्राष्ट्रीय भू-भौतिकी वर्ष (IGW) के रुप में देखा जाता है। साराभाई द्वारा IGW के लिए भारतीय कार्यक्रम एक अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा।
विक्रम साराभाई ने अपनी अंतिम सांस कहां ली थी?
र्ष 1971 में साराभाई केरल के एक होटल में थे जहां उन्होंने रूसी रॉकेट के प्रक्षेपण को देखते हुए अपनी अंतिम सांस ली। जब उनका निधन हुआ तब वह केवल 52 वर्ष के थे। बहुत कम उम्र में साराभाई ने भारत के लिए अद्भुत योगदान दिया। ऐसी महान आत्माओं का बदला चुकाना लगभग असंभव है।
विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र का पुराना नाम क्या था?
केंद्र की शुरुआत थम्बा भूमध्यरेखीय रॉकेट प्रक्षेपण केंद्र के तौर पर १९६२ में हुई थी। केंद्र का पुनः नामकरण भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ॰ विक्रम साराभाई के सम्मान में किया गया।
विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के अध्यक्ष कौन है?
डॉ. एस. उण्णिकृष्णन नायर,