Santan Saptami Vrat Information In Hindi हॅलो ! इस पोस्ट में हम संतान सप्तमी व्रत के बारे में जानकारी लेने वाले हैं । संतान सप्तमी का व्रत संतान प्राप्ती के लिए और उनकी रक्षा के लिए किया जाता हैं । संतान सप्तमी का व्रत माता अपने संतान के लंबी आयु के लिए रखती हैं । संतान सप्तमी का व्रत हिंदी पंचांग के अनुसार भादो मास के शुक्ल पक्ष के सप्तमी के दिन किया जाता हैं । इसे ललिता सप्तमी इस नाम से भी जाना जाता हैं । ऐसी मान्यता हैं की संतान सप्तमी के व्रत के प्रभाव से संतान के दु:ख और परेशानियों का निवारण होता हैं । यह व्रत माता और पिता दोनो मिलकर भी संतान के सूख के लिए रखते हैं ।
संतान सप्तमी व्रत के बारे में जानकारी Santan Saptami Vrat Information In Hindi
संतान सप्तमी व्रत की पूजा विधि –
संतान सप्तमी का व्रत करने के लिए भाद्रपद शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान करें । ऐसी मान्यता हैं की यह व्रत की पूजा दोपहर तक पूरी की तो अच्छा होता हैं । सुबह जल्दी स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनकर तैयार हो जाये । इसके बाद माता पार्वती , भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा करें । दोपहर में एक चौक बनाये और उस चौक पर भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा रखें ।
भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा रखने के बाद उन प्रतिमाओं को स्नान कराये और स्नान कराने के बाद प्रतिमा को चांद का लेप लगाये । इसके बाद प्रतिमा को नारीयल , आकर्षण और सुपारी अर्पण करें । इसके बाद प्रतिमा के सामने दीप लगाये और भोग लगाये । इसके बाद संतान की रक्षा का संकल्प लें और भगवान शिव को एक डोरा बांधे ।
इसके बाद इस डोरे को अपने संतान की कलाई पर बांधे । संतान सप्तमी के दिन भोग में खीर और पूरी का प्रसाद चढ़ाया जाता हैं । इस प्रसाद पर तुलसी का एक पत्ता रखें और उस प्रसाद को भगवान के सामने रखे और प्रसाद के बाजु से तीन बार जल घुमाये ।
इसके बाद सभी परिवार के लोग मिलके आरती करें । इसके बाद भगवान के दर्शन लें और उनके पास अपने मन की इच्छा व्यक्त करें । इसके बाद उस भोग को सभी परिवार के लोग खाये और अपने पड़ोस में भी वितरित करें ।
संतान सप्तमी की व्रत कथा –
संतान सप्तमी के पूजा के बाद संतान सप्तमी की व्रत कथा सूनना महत्त्वपूर्ण होता हैं । पूजा के बाद यह कथा सुनने का महत्व सभी हिंदू व्रत में मिलता हैं । इस व्रत की कथा अगर पती पत्नी ने साथ मिलकर सुनी तो इसको अधिक प्रभावशाली माना जाता हैं ।
अयोध्या के एक राजा थे । उनका नाम नहुष था और उनके पत्नी का नाम चंद्रमुखी था । चंद्रमुखी की एक सहेली थी । उस सहेली का नाम रूपमती था । रूपमती नगर के ब्राम्हण की पत्नी थी । चंद्रमुखी और रूपमती को एक दूसरे से बहोत प्रेम था ।
एक दिन चंद्रमुखी और रूपमती दोनो सरयू नदी के तट पर स्नान करने गयी । सरयू नदी के तट पर बहोत स्त्रिया संतान सप्तमी का व्रत कर रही थी । चंद्रमुखी और रूपमती ने उनकी कथा सुन ली और दोनों ने भी पुत्र प्राप्ती के लिये यह व्रत करने का निश्चय किया ।
इसके बाद वह दोनो घर आ गई और घर आकर व्रत करने के बारे में भुल गई । कुछ समय के बाद दोनों की मृत्यु हो गई और दोनो सखीयों ने पशु योनी में जन्म लिया । कुछ जन्मों के बाद दोनो सखियों ने मनुष्य योनी में जन्म लिया । इस जन्म में चंद्रवती का नाम ईश्वरी था और रूपमती का नाम भूषणा था ।
ईश्वरी एक राजा की पत्नी थी और भूषणा ब्राम्हण की पत्नी थी । इस जन्म में भी रूपमती और भूषणा के बीच में बहोत प्रेम था । इस जन्म में भूषणा को पूर्व जन्म की कथा याद थी । इसलिए उसने संतान सप्तमी का व्रत किया । इसके बाद उसे आठ पुत्र की प्राप्ती हुई । ईश्वरी ने इस व्रत का पालन नहीं किया , इसलिए ईश्वरी को कोई संतान नहीं थी ।
इस वजह से ईश्वरी को भूषणा से इर्षा होने लगी । ईश्वरी ने बहोत बार भूषणा के पुत्रों को मारने की कोशिश की । लेकिन भूषणा ने जो व्रत किये थे उसके प्रभाव से उसके पूत्रों को कोई नुकसान नहीं हुआ । इसके बाद ईश्वरी थक गई और ईश्वरी ने भूषणा को अपने कृत्य के बारे में बताया और क्षमा मांगी ।
इसके बाद भूषणा ने ईश्वरी को पूर्वजन्म की बात याद दिलाई और संतान सप्तमी का व्रत करने को कहा । ईश्वरी ने संतान सप्तमी के व्रत को विधि विधान से किया । इसके बाद ईश्वरी को एक सुंदर पुत्र की प्राप्ती हुई । इस तरह से संतान सप्तमी के व्रत का महत्व सुनकर सभी मनुष्य पुत्र प्राप्ती के लिए और उनकी सुरक्षा के लिए यह व्रत करते हैं ।
संतान प्राप्ती व्रत करने का महत्व –
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार संतान सप्तमी के दिन व्रत करने से उत्तम संतान की प्राप्ती होती हैं । इस व्रत में संतान के अच्छे स्वास्थ्य और लंबी आयू की कामना की जाती हैं । इस दिन व्रत करने से संतान को अच्छे स्वास्थ्य और लंबी आयू की प्राप्ती होती हैं । यह व्रत करना संतान के लिए बहोत शुभ होता हैं । यह व्रत करने से सुख और सौभाग्य में वृद्धी होती हैं । यह व्रत स्त्रियां द्वारा पुत्र प्राप्ती के लिए किया जाता हैं । इस व्रत को माता – पिता दोनों द्वारा मिलकर किया हुआ भी बहोत शुभ माना जाता हैं ।
हमने इस पोस्ट में संतान सप्तमी व्रत के बारे में जानकारी ली । हमारी पोस्ट शेयर जरुर किजीए । धन्यवाद !
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संतान सप्तमी का व्रत कैसे किया जाता है?
पूजा की चौकी पर शिव-पार्वती की मूर्ति स्थापित करें. कलश रखकर उस पर नारियल रखें. जल, दूध, चावल, रोली, फूल से पूजा करें और भीगा हुआ बाजरा चढ़ा कर, दक्षिण चढ़ावें. मीठी पूड़ी और पुए को पान के पत्ते पर रखकर शिव जी को चढ़ाएं, बच्चे की उन्नति की कामना करें.
संतान सप्तमी व्रत में क्या क्या खा सकते हैं?
पूरी खीर या फिर आटे और गुड़ से बने हुए मिष्ठान
संतान सप्तमी कितने बजे तक है?
सप्तमी तिथि प्रारंभ: 21 सितंबर दोपहर 2:14 मिनट पर शुरू होगी। सप्तमी तिथि समाप्ति: 22 सितंबर को दोपहर 1ः35 बजे तक दिन रहेगी।
संतान के लिए कौन सा व्रत रखना चाहिए?
संतान प्राप्ति की कामना के लिए पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण के बालस्वरूप का पूजन करें. पुत्र प्राप्ति के लिए या संतान प्राप्ति में बाधा आ रही है तो श्रद्धापूर्वक पुत्रदा एकादशी का व्रत करें. अगर आप सक्षम हैं तो पुत्रदा एकादशी के दिन निर्जला व्रत रखें और भगवान से संतान प्राप्ति की प्रार्थना करें.