जानिए एक भिखारी से करोडपती बनने तक का सफ़र Renuka Aradhya Success Story In Hindi

Renuka Aradhya Success Story In Hindi यह एक ऐसे इंसान की कहानी है, जो अपनी मेहनत और लगन के बलबूते एक भिखारी से करोड़पति बन गया। जहाँ कभी वह घर-घर जाकर भीख माँगा करता था, आज न केवल उसकी कंपनी का टर्नओवर 30 करोड़ रुपए है बल्कि उसकी कंपनी की वजह से 150 अन्य घरों में भी चूल्हा जलता है।

Renuka Aradhya Success Story In Hindi

जानिए एक भिखारी से करोडपती बनने तक का सफ़र Renuka Aradhya Success Story In Hindi

हम बात कर रहे हैं रेणुका अराध्य की, जिनकी उम्र अब 50 वर्ष की हो गयी है। उनकी जिंदगी की शुरुआत हुई बेंगलुरू के निकट अनेकाल तालुका के गोपासन्द्र गाँव से। उनके पिता एक छोटे से स्थानीय मंदिर के पुजारी थे, जो अपने परिवार की जीविका के लिए दान-पूण्य से मिले पैसों पर से चलाते थे। दान-पुण्य के पैसों से उनका घर नहीं चल पाता था इसलिए वे आस-पास गाँवों में जा-जाकर भिक्षा में अनाज माँग कर लाते। फिर उसी अनाज को बाज़ार में बेचकर जो पैसे मिलते उससे जैसे-तैसे अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे।

रेणुका भी भिक्षा माँगने में अपने पिता की मदद करते थे। पर परिवार की हालात यहाँ तक खराब हो गई कि छठी कक्षा के बाद एक पुजारी होने के नाते रोज पूजा-पाठ करने के बाद भी उन्हें कई घरों में जाकर नौकर का भी काम करना पड़ता। जल्दी ही उनके पिता ने उन्हें चिकपेट के एक आश्रम में डाल दिया, जहाँ उन्हें वेद और संस्कृत की पढ़ाई करनी पड़ती थी और सिर्फ दो वक्त ही भोजन मिलता था – एक सुबह 8 बजे और एक रात को 8 बजे। इससे वो भूखे ही रह जाते और पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाते। पेट भरने के लिए वो पूजा, शादी और समाराहों में जाना चाहते थे, जिसके लिए उन्हें अपने सीनियर्स के व्यतिगत कामों को भी करना पड़ता। परिणामस्वरूप, वो दसवीं की परीक्षा में फ़ैल हो गए।

फिर उनके पिता के देहांत और बड़े भाई के घर छोड़ देने से, अपनी माँ और बहन की जिम्मेदारी उनके कन्धों पर आ गई। पर उन्होंने यह दिखा दिया कि मुसीबत की घड़ी में भी वे अपनी जिम्मेदारियों से मुह नहीं मोड़ते। और इसी के साथ वे निकल पड़े आजीविका कमाने की एक बहुत लंबी लड़ाई पर। जिसमें उन्हें कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा, अपनी निराशाओं से जूझना पड़ा और धक्के पर धक्के खाने पड़े।

इस राह पर न जाने उन्हें कैसे-कैसे काम करने पड़े जैसे, प्लास्टिक बनाने के कारखाने में और श्याम सुन्दर ट्रेडिंग कंपनी में एक मजदूर की हैसियत से, सिर्फ 600 रु के लिए एक सिक्योरिटी गार्ड के रूप में, सिर्फ 15 रूपये प्रति पेड़ के लिए नारियल के पेड़ पर चढ़ने वाले एक माली के रूप में। पर उनकी कुछ बेहतर कर गुजरने की ललक ने कभी उनका साथ नहीं छोड़ा और इसलिए उन्होंने कई बार कुछ खुद का करने का भी सोचा। एक बार उन्होंने घर-घर जाकर बैगों और सूटकेसों के कवर सिलने का काम शुरू किया, जिसमें उन्हें 30,000 रुपयों का घाटा हुआ।

उनके जीवन ने तब जाकर एक करवट ली जब उन्होंने सब कुछ छोड़कर एक ड्राइवर बनने का फैसला लिया। पर उनके पास ड्राइवरी सिखने के भी पैसे नहीं थे, इसलिए उन्होंने कुछ उधार लेकर और अपने शादी की अंगूठी को गिरवी रखकर ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त किया। इसके बाद उन्हें लगा की अब सब ठीक हो जाएगा, पर किस्मत ने उन्हें एक और झटका दिया जब गाड़ी में धक्का लगा देने की वजह से उन्हें अपनी पहली ड्राइवर की नौकरी से कुछ ही घंटों में हाथ धोना पड़ा। पर एक सज्जन टैक्सी ऑपरेटर ने उन्हें एक मौक़ा दिया और बदले में रेणुका ने बिना पैसे के ही उनके लिए गाड़ी चलाई, ताकि वो खुद को साबित कर सके। वे दिन भर काम करते और रात-रात भर जागकर गाड़ी को चलाने का अभ्यास करते।

उन्होंने ठान लिया कि,“चाहे जो हो जाए, मैं इस बार वापस सिक्योरिटी गार्ड का काम नहीं करूँगा और एक अच्छा ड्राइवर बन कर रहूँगा”

वो अपने यात्रियों का हमेशा ही ध्यान रखते, जिससे उन पर लोगों का विश्वास जमता गया और ड्राइवर के रूप में उनकी माँग बढ़ती ही गई। वे यात्रियों के अलावा हॉस्पिटल से लाशों को उनके घरों तक भी पहुँचाते थे।

वे कहते हैं, “लाशों को घर तक पहुँचाने और उसके तुरंत बाद यात्रियों को तीर्थ ले जाने से मुझे एक बहुत बड़ी सीख मिली की जीवन और मौत एक बहुत लंबी यात्रा के दो छोर ही तो हैं और यदि आपको जीवन में सफल होना है तो किसी भी मौके को जाने न दें”

पहले तो वे 4 वर्षों तक एक ट्रेवल कंपनी में काम करते रहे उसके बाद वे उस ट्रेवल कंपनी को छोड़कर वे एक दूसरी ट्रेवल कंपनी में गए, जहाँ उन्हें विदेशी यात्रियों को घुमाने का मौक़ा मिला। विदेशी यात्रियों से उन्हें डॉलर में टिप मिलती थी। लगातार 4 वर्षों तक यूँ ही टिप अर्जित करते-करते और अपनी पत्नी के पीएफ की मदद से उन्होंने कुछ अन्य लोगों के साथ मिलकर “सिटी सफारी” नाम की एक कंपनी खोली। इसी कंपनी में आगे जाकर वे मैनेजर बने। उनकी जगह कोई और होता तो शायद इतने पर ही संतुष्ट हो जाता, पर उन्हें अपनी सीमाओं को परखने की ठान रखी थी। इसलिए उन्होनें लोन पर एक “इंडिका” कार ली, जिसके सिर्फ डेढ़ वर्ष बाद एक और कार ली। इन कारों की मदद से उन्होंने 2 वर्षों तक “स्पॉट सिटी टैक्सी” में काम किया।

पर उन्होंने सोचा,“अभी मेरी मंजिल दूर है और मुझे खुद की एक ट्रेवल/ट्रांसपोर्ट कंपनी बनानी है”

कहते हैं न की किस्मत भी हिम्मतवालों का ही साथ देती है। ऐसा ही कुछ रेणुका के साथ हुआ जब उन्हें यह पता चला कि “इंडियन सिटी टैक्सी” नाम की एक कंपनी बिकने वाली है। सन 2006 में उन्होंने उस कंपनी को 6,50,000 रुपयों में खरीद ली, जिसके लिए उन्हें अपने सभी कारों को बेचना पड़ा।

उन्हीं के शब्दों में, “मैंने अपने जीवन का सबसे बड़ा जोखिम लिया, पर वही जोखिम आज मुझे कहाँ से कहाँ लेकर आ गया”

उन्होंने अपनी उस कंपनी का नाम बदलकर “प्रवासी कैब्स” रख दिया। उनके बाद वे सफलता की और आगे बढ़ते गए। सबसे पहले “अमेज़न इंडिया” ने प्रमोशन के लिए रेणुका की कंपनी को चुना। उसके बाद रेणुका ने अपनी कंपनी को आगे बढ़ाने में जी-जान लगा दिया। धीरे-धीरे उनके कई और नामी-गिरामी ग्राहक बन गए, जैसे वालमार्ट, अकामाई, जनरल मोटर्स आदि। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे पलट कर नहीं देखा और सफलता की ओर उनके कदम बढ़ते ही गए। पर उन्होंने कभी भी सीखना बंद नहीं किया।

उनकी कंपनी इतनी मजबूत हो गई कि जहाँ कई और टैक्सी कंपनियाँ “ओला” और “उबेर” के आने से बंद हो गई, उनकी कंपनी फिर भी सफलता की ओर आगे बढ़ रही है। आज उनकी कंपनी की 1000 से ज्यादा कारें चलती है। आज वे तीन स्टार्टअप के डायरेक्टर हैं और तीन वर्षों में उनका 100 करोड़ के आँकड़े को छूने की उम्मीद है, जिसके बाद वो आई.पी.ओ. की ओर आगे बढ़ेंगे। कौन सोच सकता था कि बचपन में घर-घर जाकर अनाज मांगने वाला लड़का जो 10 वीं कक्षा में फ़ैल हो गया था और जिसके पास खुद का एक रूपया नहीं था वह आज 30 करोड़ की कंपनी का मालिक है।

इसलिए हरिवंश रॉय बच्चन ने अपनी कबिता में कहा है की , ” कोशिश करनेवालों की कभी हार नहीं होती “.

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