Krishna Quotes In Hindi भगवान श्री कृष्णा भगवान विष्णु जी के आठवें अवतार है। विट्ठल, कृष्ण, कान्हा, श्याम, कन्हैया, केशव, गोपाल, वासुदेव, द्वारकाधीश, द्वारकेश यह कुछ श्री कृष्ण जी के अन्य नाम है। सबसे पहले आपने श्री कृष्ण के बारे में श्रीमद्भागवत गीता में जरूर सुना होगा, जहां पर श्री कृष्ण जी ने अर्जुन को जीवन के महत्वपूर्ण ज्ञान प्रदान किया था।
श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को बताए गए उन बातों से आज भी बहुत सारे लोगों का जीवन बदल रहा है। यदि आप भी अपने जीवन को बदलना चाहते हैं और अंधेरे से सत्य की तरफ आना चाहते हैं और अपने जीवन से जुड़ी समस्याओं का हल चाहते हैं, तो आप बिल्कुल सही जगह पर आ चुके हैं। क्योंकि इस लेख के अंदर हम आपको श्री कृष्ण के अनमोल वचनों की सूची प्रदान करने वाले हैं।
श्री कृष्ण जी की बात करें तो वासुदेव और देवकी की आठवीं संतान है श्री कृष्ण। देवकी के भाई कंस को पता था कि कृष्ण ही उसके मरने का कारण बनने वाला है। इस वजह से कंस हर हाल में श्रीकृष्ण को पैदा होने से पहले मारना चाहते थे, परंतु ऐसा हो ना सका। श्री कृष्ण जी का पालन पोषण मैया यशोदा और नंद लाल जी ने किया और बाद में बड़े होकर श्री कृष्ण जी ने राक्षस राजा कंस का वध किया।
इंसान अपने विश्वास की बुनियाद पर उस जैसा बनता चला जाता हैं।
आपके साथ अब तक जो हुआ अच्छे के लिए हुआ, आगे जो कुछ होगा अच्छे के लिए होगा, जो हो रहा हैं, वो भी अच्छे के लिए हो रहा हैं, इसलिए हमेशा वर्तमान में जीओ, भविष्य की चिंता मत करो।
कोशिश की जाए तो अपने अशांत मन को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता हैं।
इंसान नहीं उसका मन किसी का दोस्त या दुश्मन होता हैं।
जो किसी दुसरो पर शक करता हैं, उसे किसी भी जगह पर खुशी नहीं मिल सकती।
क्रोध मुर्खता को जन्म देता हैं, अफवाह से अकल का नाश, और अकल से नाश से इंसान का नाश होता हैं।
किसी भी काम में आपकी योग्यता को योग कहते हैं।
भगवान सभी लोगो मन में बसते हैं, और अपनी माया से उनके मन को जैसा चाहे वैसा घड़े की तरह घड़ते हैं।
सही मायने में चोर वो हैं, जो अपने हिस्से का काम किये बिना भोजन करता हैं।
कर्म किये जाओ, फल की चिंता मत करो।
मन बहुत चंचल हैं, जो इंसान के दिल में उथल-पुथल कर देता हैं।
हर कोई खाली हाथ आया था, और खाली हाथ ही इस दुनिया से जाएगा।
परिवर्तन संचार का नियम हैं, कल जो किसी और का था आज वो तुम्हारा हैं कल वो किसी और का होगा।
मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया मन से मिटा दो फिर सब तुम्हारा हैं और तुम सबके हो।
भूत और भविष्य में नही, जीवन तो इस पल में हैं अर्थात वर्तमान का अनुभव ही जीवन हैं।
तू करता वही हैं, जो तू चाहता हैं, होता वही है जो मैं चाहता हूँ, तू वही कर जो मैं चाहता हूँ फिर होगा वही, जो तू चाहता हैं।
तू करता वही हैं, जो तू चाहता हैं, होता वही है जो मैं चाहता हूँ, तू वही कर जो मैं चाहता हूँ फिर होगा वही, जो तू चाहता हैं।
जो मन को नियंत्रित नही करते उनके लिए वह शत्रु के सामान कार्य करता हैं।
खुशियों में तो सब साथ होते हैं, असली दोस्त वही हैं जो दुःख में साथ दे।
सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति को कभी भी सुख नही मिल सकता।
नर्क के तीन द्वार हैं:वासना, क्रोध और लालच।
मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता हैं, जैसा वह विश्वास करता हैं, वैसा वह बन जाता हैं।
जानने की शक्ति झूठ को सच से पृथक करने वाली जो विवेक बुद्धि हैं, उसी का नाम ज्ञान हैं।
परिवर्तन ही संसार का नियम हैं।
खाली हाथ आये हो और खाली हाथ जाना हैं इसलिए व्यर्थ की चिंता छोड़कर व्यक्ति को हमेशा सद्कर्म करना चाहिए।
जिसे तुम अपना समझ कर मग्न हो रहे हो बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दुखो का कारण हैं।
जो कोई भी जिस किसी भी देवता की पूजा विश्वास के साथ करने की इच्छा रखता है, मैं उसका विश्वास उसी देवता में दृढ कर देता हूँ।
कवल मन ही किस का मित्र और शत्रु होता है।
अपने अनिवार्य कार्य करो, क्योंकि वास्तव में कार्य करना निष्क्रियता स बेहतर है।
कर्म का फल व्यक्ति को उसी तरह ढूंढ लेता है, जैसे कोई बछड़ा सैकड़ों गायों के बीच अपनी मां को ढूंढ लेता है।
आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है, ना ही इसे जलाया जा सकता है, ना ही पानी से गिला किया जा सकता है, आत्मा अमर और अविनाशी है।
मैं किसी के भाग्य का निर्माण नहीं करता और ना ही किसी के कर्मो के फल देता हूँ।
व्यक्ति या जीव का कर्म ही उसके भाग्य का निर्माण करता है।
आत्मा पुराने शरीर को वैसे ही छोड़ देती है, जैसे मनुष्य पुराने कपड़ों को उतार कर नए कपड़े धारण कर लेता है।
इस संसार में कुछ भी स्थाई नहीं है।
मन शरीर का हिस्सा है, सुख दुख का एहसास करना आत्मा का नहीं शरीर का काम है।
हे अर्जुन अगर तुम अपना कल्याण चाहते हो, तो सभी उपदेशों, सभी धर्मों को छोड़ कर मेरी शरण में आ जाओ, मैं तुम्हें मुक्ति प्रदान करुंगा।
मोहग्रस्त होकर अपने कर्तव्य पथ से हट जाना मूर्खता है, क्योंकि इससे ना तो तुम्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी और ना ही तुम्हारी कीर्ति बढ़ेगी।
धर्म युद्ध में कोई भी व्यक्ति निष्पक्ष नहीं रह सकता है। धर्म युद्ध में जो व्यक्ति धर्म के साथ नहीं खड़ा है इसका मतलब है वह अधर्म का साथ दे रहा है, वह अधर्म के साथ खड़ा है।
भगवान प्रत्येक वस्तु में, प्रत्येक जीव में मौजूद हैं।
मुझे जानने का केवल एक हीं तरीका है, मेरी भक्ति, मुझे बुद्धि द्वारा कोई न जान सकता है, न समझ सकता है।
आत्मा का अंतिम लक्ष्य परमात्मा में मिल जाना होता है।
मैं हीं इस सृष्टि की रचना करता हूँ, मैं हीं इसका पालन-पोषण करता हूँ और मैं हीं इस सृष्टि का विनाश करता हूँ।
मैं सभी प्राणियों को जानता हूँ, सभी के भूत, भविष्य और वर्तमान को जानता हूँ. लेकिन मुझे कोई नहीं जानता है।
जो मुझे जिस रूप में पूजता है… मैं उसी रूप में उसे उसकी पूजा का फल देता हूँ।
जन्म लेने वाले व्यक्ति की मृत्यु निश्चित है, और मरने वाले व्यक्ति का फिर से जन्म लेना निश्चित है।
क्या नींद क्या ख्वाब, आँखे बन्द करू तो, तेरा चेहरा, आंख खोलू तो तेरा ख्याल मेरे कान्हा…
रख लूँ नजर मे चेहरा तेरा, दिन रात इसी पे मरती रहूँ.., जब तक ये सांसे चलती रहे, मे तुझसे मोहब्बत करती रहूँ.., !!…मेरे कान्हा मेरी दुनिया..!!
मत रख अपने दिल में इतनी नफरते ऐ इंसान, जिस दिल में नफरत हो उस दिल में मेरा श्याम नहीं रहता..
बड़ी आस ले कर आया, बरसाने में तुम्हारे कर दो शमा, किशोरी जी अपराध मेरे सारे, सवारू में भी अपना जीवन, श्री राधा नाम जपते जपते…, प्रेम से बोलो श्री राधे..
वो दिन कभी न आए, हद से ज्यादा गरूर हो जाये, बस इतना झुका कर रखना, “मेरे कन्हैया”, की हर दिल दुआ देने को मजबूर हो जाये…
कैसे लफ्जो मे बयां करूँ खूबसुरती तुम्हारी सुंदरता का झरना भी तुम हो…. मोहब्बत का दरिया भी तुम हो….. मेरे श्याम
साँवरे को दिल में बसा कर तो देखो, दुनिया से मन को हटा के देखो, बड़े ही दयालु हैं बाँके बिहारी, एक बार चौखट पे दामन, फैला कर तो देखो….
उन्होंने नस देखि हमारी और बीमार लिख दिया… रोग हमने पूछा तो वृंदावन से प्यार लिख दिया… कर्जदार रहेगे उम्र भर हम उस वैद के जिसने दवा में.. “श्री राधे कृष्ण” नाम लिख दिया…
इस नये साल मे खुद को भी, एक गिफ्ट देना है साँवरे, जिससे आप की परवाह नही, उसे छोड देना है..
जय श्रीराधे राधे! श्रीकृष्ण जिनका नाम है, गोकुल जिनका धाम है! ऐसे श्रीकृष्ण को मेरा, बारम्बार प्रणाम है!
मेरे दिल की दीवारों पर श्याम तुम्हारी छवि हो, मेरे नैनो की पलकों में कान्हा तस्वीर तेरी हो, बस और न मांगू तुझसे मेरे गिरधर… तुझे हर पल देखू मेरे कन्हैया ऐसी तकदीर हो मेरी….
डूबे ना वो नैया, चाहे तूफान आए या सुनामी, जिसकी नांव का मांझी, खुद है शीश का दानी।
जहाँ बेचैन को चैन मिले वो घर तेरा वृन्दावन है, जहां आत्मा को परमात्मा मिले वो दर तेरा वृन्दावन है, मेरी रूह तो प्यासी थी, प्यासी है तेरे लिए सावरिया, जहां इस रूह को जन्नत मिले वो स्थान ही मेरा श्री वृन्दावन है।
मेरे कान्हा, जानते हो फिर भी अंजान बनते हों, इस तरह क्यों हमें परेशान करते हों, पुछते हो तुम्हें क्या क्या पंसद है, जबाब खुद हो फिर भी सवाल करते हों… राधे राधे। जय श्री राधे कृष्णा।
तुम क्या मिले की साँवरे, मेरा मुकद्दर सवंर गया, उजड़े हुए नसीब का गुलशन निखर गया… जय श्री कृष्णा।
अजीब नशा है, अजीब खुमारी है, हमे कोई रोग नहीं बस, जय श्री राधे कृष्णा, राधे कृष्णा बोलने बीमारी है…
वृंदावन की हवा, जरा अपना रुख हमारी तरफ भी मोड दे, इस वीरान दिल मे राधा नाम की मस्ती छोड दे… उड़ जाये माया की मिट्टी ओर, दीदार हो सांवरे का, ऐसी प्रीत हमारी राधा नाम से जोड़ दे… जय श्री राधे।
गजब के चोर हो कान्हा, चोरी भी करते हो, और दिलो पर राज भी….
एक तेरे ख्वाबो का शोक एक तेरी, याद की आदत, तू ही बता साँवरे… सोकर तेरा दीदार करूँ या जाग कर तुझे याद…
बैरागी बने तो जग छूटे, सन्यासी बने तो छूटे तन, कान्हा से प्रेम हो जाये, तो छूटे आत्मा के सब बन्धन।
शिव भी मैं हूँ, दुर्गा भी मैं हूँ। समस्त ब्रह्माण्ड, समस्त सृष्टि में मैं ही हूँ, मृत्यु भी मैं ही हूँ। सरे देवी-देवता मुझी को जानो। आकाश, पर्वत, वन सब मैं ही हूँ।
कोई मुझे दुर्गा रूप में माता समझकर पूजता है, तो कोई मुझे विष्णु मानकर पूजता है।
मैं अजन्मा हूँ, मैं नित्य हूँ, न मेरा ओर है.. न छोर।
मूलतः मैं निराकार हूँ।लेकिन मेरे भक्त बड़े ही अनोखे और निराले हैं। कोई मेरी मूर्ति बनाकर मुझे अपनी नजरों से देखना चाहता है, तो कोई मुझसे प्रेमी, पुत्र या पिता के रूप में अपने समीप देखना चाहता है। अपने भक्तों के वश में होकर ही मैं भिन्न-भिन्न रूप धरता हूँ।
मन की गतिविधियों, होश, श्वास, और भावनाओं के माध्यम से भगवान की शक्ति सदा तुम्हारे साथ है, और लगातार तुम्हे बस एक साधन की तरह प्रयोग कर के सभी कार्य कर रही है।
ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, वही सही मायने में देखता है।
सभी अच्छे काम छोड़ कर बस भगवान में पूर्ण रूप से समर्पित हो जाओ। मैं तुम्हे सभी पापों से मुक्त कर दूंगा। शोक मत करो।
किसी और का काम पूर्णता से करने से कहीं अच्छा है कि अपना काम करें, भले ही उसे अपूर्णता से करना पड़े।
मैं सभी प्राणियों को सामान रूप से देखता हूँ, ना कोई मुझे कम प्रिय है ना अधिक। लेकिन जो मेरी प्रेमपूर्वक आराधना करते हैं वो मेरे भीतर रहते हैं और मैं उनके जीवन में आता हूँ।
प्रबुद्ध व्यक्ति सिवाय ईश्वर के किसी और पर निर्भर नहीं करता।
मेरी कृपा से कोई सभी कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए भी बस मेरी शरण में आकर अनंत अविनाशी निवास को प्राप्त करता है।
मैं धरती की मधुर सुगंध हूँ। मैं अग्नि की ऊष्मा हूँ, सभी जीवित प्राणियों का जीवन और सन्यासियों का आत्मसंयम हूँ।
तुम उसके लिए शोक करते हो जो शोक करने के योग्य नहीं हैं, और फिर भी ज्ञान की बाते करते हो.बुद्धिमान व्यक्ति ना जीवित और ना ही मृत व्यक्ति के लिए शोक करते हैं।
कभी ऐसा समय नहीं था जब मैं, तुम,या ये राजा-महाराजा अस्तित्व में नहीं थे, ना ही भविष्य में कभी ऐसा होगा कि हमारा अस्तित्व समाप्त हो जाये।
कर्म मुझे बांधता नहीं, क्योंकि मुझे कर्म के प्रतिफल की कोई इच्छा नहीं।
वह जो वास्तविकता में मेरे उत्कृष्ट जन्म और गतिविधियों को समझता है, वह शरीर त्यागने के बाद पुनः जन्म नहीं लेता और मेरे धाम को प्राप्त होता है।
बुद्धिमान व्यक्ति को समाज कल्याण के लिए बिना आसक्ति के काम करना चाहिए।
जो व्यक्ति आध्यात्मिक जागरूकता के शिखर तक पहुँच चुके हैं, उनका मार्ग है निःस्वार्थ कर्म। जो भगवान के साथ संयोजित हो चुके हैं उनका मार्ग है स्थिरता और शांति।
वह जो सभी इच्छाएं त्याग देता है और मैं और मेरे की लालसा और भावना से मुक्त हो जाता है उसे शांती प्राप्त होती है।
मेरे लिए ना कोई घृणित है ना प्रिय। किन्तु जो व्यक्ति भक्ति के साथ मेरी पूजा करते हैं, वो मेरे साथ हैं और मैं भी उनके साथ हूँ।
जो इस लोक में अपने काम की सफलता की कामना रखते हैं वे देवताओं का पूजन करें।
बुरे कर्म करने वाले, सबसे नीच व्यक्ति जो राक्षसी प्रवित्तियों से जुड़े हुए हैं, और जिनकी बुद्धि माया ने हर ली है वो मेरी पूजा या मुझे पाने का प्रयास नहीं करते।
स्वर्ग प्राप्त करने और वहां कई वर्षों तक वास करने के पश्चात एक असफल योगी का पुन: एक पवित्र और समृद्ध कुटुंब में जन्म होता है।
केवल मन ही किसी का मित्र और शत्रु होता है।
मैं सभी प्राणियों के ह्रदय में विद्यमान हूँ।
ऐसा कुछ भी नहीं, चेतन या अचेतन, जो मेरे बिना अस्तित्व में रह सकता हो।
वह जो मृत्यु के समय मुझे स्मरण करते हुए अपना शरीर त्यागता है, वह मेरे धाम को प्राप्त होता है। इसमें कोई शंशय नहीं है।
वह जो इस ज्ञान में विश्वास नहीं रखते, मुझे प्राप्त किये बिना जन्म और मृत्यु के चक्र का अनुगमन करते हैं।
जो दान बिना सत्कार के, कुपात्र को दिया जाता है वह तमस दान कहलाता है।
मनुष्य संप्रदाय दो ही तरह के है एक दैवीय सम्प्रदा वाले एक आसुरी सम्प्रदा वाले।
दैवीय सम्प्रदा मुक्ति की तरफ और आसुरी सम्प्रदा नार्को की और ले जाने वाली है।
मन, वाणी और कर्म से किसी को भी दुःख न देना, प्रिय भाषण, अपना बुरा करने वाले पर भी क्रोध न करना, चित की चंचलता का आभाव,दम्भ, अहंकार, घमंड, क्रोध अज्ञान ये आसुरी सम्प्रदा के लक्षण है।
भय का आभाव, अनन्तःकरण की निर्मलता, तत्ज्ञान के लिए ध्यानयोग में स्थिति, दान, गुरुजन की पूजा, पठन पाठन, अपने धर्म के पालन के लिए कष्ट सहना ये दैवीय सम्प्रदा के लक्षण है।
शास्त्र, वर्ण, आश्रम की मर्यादा के अनुसार जो काम किया जाता है वह कार्य है और शास्त्र आदि की मर्यादा से विरुद्ध जो काम किया जाता है वह अकार्य है।
जो मन की खोज में लगे रहे, वही सच्चे प्रेम को पाता है।
अच्छा कर्म करने में ध्यान रखो, फल की चिंता मत करो।
इस संसार में कुछ भी स्थाई नहीं है।
संतुष्ट मन इस विश्व का सबसे बड़ा धन है।
कर्म किये जाओ, फल की चिंता मत करो।
भगवान प्रत्येक वस्तु में, प्रत्येक जीव में मौजूद हैं।
आत्मा अमर है, इसलिए मरने की चिंता मत करो।
आत्मा का अंतिम लक्ष्य परमात्मा में मिल जाना होता है।
इंसान नहीं, उसका मन किसी का दोस्त या दुश्मन होता हैं।
बड़प्पन वह गुण है जो पद से नहीं, संस्कारों से प्राप्त होता है।
व्यक्ति या जीव का कर्म ही उसके भाग्य का निर्माण करता है।
मन बहुत चंचल है, जो इंसान के दिल में उथल-पुथल कर देता है।
जब वे अपने कार्य में आनंद खोज लेते हैं, तब वे पूर्णता प्राप्त करते हैं।
वर्तमान परिस्थिति में जो तुम्हारा कर्तव्य है, वही तुम्हारा धर्म है।
प्रबुद्ध व्यक्ति के लिए, गंदगी का ढेर, पत्थर और सोना सभी समान हैं।
आपके कर्म ही आपकी पहचान है, वरना एक नाम के हजारों इंसान हैं।
धर्म केवल कर्म से होता है कर्म के बिना धर्म की कोई परिभाषा ही नहीं है।
अहंकार करने पर इंसान की प्रतिष्ठा, वंश, वैभव, तीनों ही समाप्त हो जाते हैं।
जीवन में कभी भी किसी से अपनी तुलना मत कीजिये, आप जैसे हैं सर्वश्रेष्ठ हैं।
बुरे कर्म करने नहीं पड़ते हो जाते है, और अच्छे कर्म होते नहीं करने पड़ते हैं।
जो अपने मन पर नियंत्रण नहीं रखता, वह स्वयं का शनै – शनै शत्रु बनता जाता है।
बुद्धिमान व्यक्ति को समाज कल्याण के लिए बिना आसक्ति के काम करना चाहिए।
स्वार्थ संसार का एक ऐसा कुआं है जिसमें गिरकर निकल पाना बड़ा कठिन होता हैं।
सेहत के लिए योग और किसी की जरूरत पर सहयोग दोनों से ही जीवन बदलता है।
आत्म-ज्ञान की तलवार से काटकर अपने ह्रदय से अज्ञान के संदेह को अलग कर दो।
दुष्ट लोग अगर समझाने मात्र से समझ जाते तो यकीन मानो महाभारत कभी ना होता।
मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है, जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है।
मान, अपमान, लाभ-हानि, खुश हो जाना या दुखी हो जाना यह सब मन की शरारत है।
जिसे तुम अपना समझ कर मग्न हो रहे हो बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दुखों का कारण हैं।
उस इंसान का मंजिल से भटक जाना तय है जिसकी संगत में नकारात्मक लोग रहते हैं।
प्रेम सदैव माफी मांगना पसंद करता है और अहंकार सदैव माफी सुनना पसंद करता है।
सिर्फ दिखावे के लिए अच्छा मत बनो मैं आपको बाहर से नहीं बल्कि भीतर से जानता हूं।
जो इस लोक में अपने काम की सफलता की कामना रखते हैं, वे देवताओं का पूजन करें।
व्यक्ति जो चाहे बन सकता है, यदि विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करें।
शब्द उतने ही बाहर निकालने चाहिए, जिन्हें वापिस भी लेना पड़े तो खुद को तकलीफ न हो।
यदि आप किसी के साथ मित्रता नहीं कर सकते हैं, तो उसके साथ शत्रुता भी नहीं करना चाहिए।
मनुष्य का जीवन केवल उसके कर्मों पर चलता है, जैसा कर्म होता है, वैसा उसका जीवन होता है।
मन अशांत हो तो उसे नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है।
दिव्यता केवल शक्तिशाली होने में नहीं, बल्कि वास्तविक दिव्यता दूसरों में शक्ति जाग्रत करने में है।
मन की गतिविधियों, होश, श्वास, और भावनाओं के माध्यम से भगवान की शक्ति सदा तुम्हारे साथ है।
जीवन में वाणी को संयम में रखना अनिवार्य है क्योंकि वाणी से दिए हुए घाव कभी भरे नहीं जा सकते।
जब हम स्वयं जीवन के शिल्पकार हैं, तो चलो हम अपनी मुश्किलों को हराते हैं, जीवन में मुस्कुराते हैं।
एक बार माफ़ करके अच्छे बन जाओ, पर दुबारा उसी इन्सान पर भरोसा करके बेवकूफ कभी न बनो।
न हार चाहिए ना जीत चाहिए। जीवन में अच्छी सफलता के लिए परिवार और कुछ मित्र का साथ चाहिये।
रिश्तो को निभाने के लिए वक़्त निकालिये, कहीं ऐसा न हो जब आपके पास वक़्त हो तो रिश्ता ही न बचे।
वह जो इस ज्ञान में विश्वास नहीं रखते, मुझे प्राप्त किये बिना जन्म और मृत्यु के चक्र का अनुगमन करते हैं।
लोग आपके अपमान के बारे में हमेशा बात करेंगे। सम्मानित व्यक्ति के लिए, अपमान मृत्यु से भी बदतर है।
जो दूसरों की तकलीफों को समझते हैं, जिनमें दया है, दिल से अच्छे हैं। उन्हें दोबारा जन्म लेना नहीं पड़ता।
जीवन में आधे दु:ख इस वजह से आते है, क्यूंकि हमने उनसे आशाऐं रखी जिन से हमें नहीं रखनी चाहिए थी।
जीवन में समय चाहे जैसा भी हो, परिवार के साथ रहो। सुख हो तो बढ़ जाता है, और दुःख हो तो बट जाता है।
इस संसार में मूर्ख व्यक्ति, अधर्मी, अज्ञानी व नास्तिक प्रकृति का व्यक्ति, मेरी शरण स्वीकार नहीं कर सकता।
ज्ञानी व्यक्ति को कर्म के प्रतिफल की अपेक्षा कर रहे अज्ञानी व्यक्ति के दिमाग को अस्थिर नहीं करना चाहिए।
अपने जीवन में कभी भी ना किसी को आनंद में वचन दे, ना क्रोध में उत्तर दे और ना ही दुख में कभी निर्णय ले।
किसी और का काम पूर्णता से करने से कहीं अच्छा है कि अपना काम करें, भले ही उसे अपूर्णता से करना पड़े।
मैं हीं इस सृष्टि की रचना करता हूँ, मैं हीं इसका पालन-पोषण करता हूँ और मैं हीं इस सृष्टि का विनाश करता हूँ।
कृष्ण कहते हैं जब – जब संसार में धर्म की हानि होगी, अधर्म की विजय। तब – तब मैं इस पृथ्वी पर अवतार लूंगा।
अमीर बनने के लिए एक एक क्षण संग्रह करना पड़ता है, किन्तु अमर बनने के लिए एक एक कण बांटना पड़ता है।
जिंदगी में सब कुछ ख़त्म होना जैसा कुछ भी नही होता, हमेशा एक नही शुरूआत हमारा इन्तजार कर रही होती हैं।
हे अर्जुन !, मैं भूत, वर्तमान और भविष्य के सभी प्राणियों को जानता हूँ, किन्तु वास्तविकता में कोई मुझे नहीं जानता।
लोग कहते हैं अपनों के आगे झुक जाना चाहिए, किंतु सच बात तो यह है जो अपने होते हैं वह कभी झुकने नहीं देते।
वह दिन मत दिखाना कान्हा कि हमें खुद पर गुरुर हो जाए, रखना अपने दिल में इस तरह कि जीवन सफल हो जाए।
वह जो सभी इच्छाएं त्याग देता है। मैं और मेरा की लालसा तथा भावना से मुक्त हो जाता है। उसे शांति प्राप्त होती है।
हमेशा छोटी छोटी गलतियों से बचने की कोशिश किया करो, क्योंकि इन्सान पहाड़ों से नहीं पत्थरों से ठोकर खाता है।
शांति से भी दुखों का अंत हो जाता है और शांत चित्त मनुष्य की बुद्धि शीघ्र ही स्थिर होकर परमात्मा से युक्त हो जाती है।
अपनी पीड़ा के लिए संसार को दोष मत दो अपने मन को समझाओ तुम्हारे मन का परिवर्तन ही तुम्हारे दुखों का अंत है।
श्री कृष्ण कहते हैं एक बार माफ़ करके अच्छे बन जाओ। पर दुबारा उसी इन्सान पर भरोसा करके बेवकूफ कभी न बनो।
इच्छा पूरी नहीं होती तो क्रोध बढ़ता है, और इच्छा पूरी होती है तो लोभ बढ़ता है। इसलिये जीवन की हर स्थिति में धैर्य बनाये रखना।
अगर तुम अपना कल्याण चाहते हो, तो सभी उपदेशों, सभी धर्मों को छोड़ कर मेरी शरण में आ जाओ, मैं तुम्हें मुक्ति प्रदान करुंगा।
जो हुआ अच्छा हुआ, जो होगा अच्छा होगा। स्वयं को मुझ पर छोड़ दो अपने कर्म पर ध्यान दो। कर्म ऐसा जो स्वार्थरहित पापरहित हो।
कृष्ण ने दुष्टों को भी अपनी गलती सुधारने का मौका दिया, क्योकि वो किसी मनुष्य को नहीं उसके अंदर के बुराई को मारना चाहते थे।
संदेह की स्याही से संबंध के पृष्ठ पर कभी शुभ अंकित नहीं होता इसलिए अपने मन के विचार और संबंधों का आधार दोनों ही शुभ रखें।
मोहग्रस्त होकर अपने कर्तव्य पथ से हट जाना मूर्खता है, क्योंकि इससे ना तो तुम्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी और ना ही तुम्हारी कीर्ति बढ़ेगी।
इस भौतिक संसार का यह नियम है जो वस्तु उत्पन्न होती है, कुछ काल तक रहती है अंत में लुप्त हो जाती है चाहे वे शरीर हो या फल हो।
यदि कोई व्यक्ति प्रेम से, भक्ति से, पुष्प, फल, जल भी मुझ पर चढ़ा दे तो उसी भाव से उसे स्वीकार करता हूं वह मेरा प्रिय भक्त होता है।
उससे मत डरो जो वास्तविक नहीं है, ना कभी था ना कभी होगा। जो वास्तविक है, वो हमेशा था और उसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता।
जीवन में आधे दुख इस कारण जन्म लेते हैं, क्योंकि हमारी आशाएं बड़ी होती है। इन आशाओं का त्याग करके देखो, जीवन में सुख ही सुख है।
अपने परम भक्तों, जो हमेशा मेरा स्मरण या एक-चित्त मन से मेरा पूजन करते हैं, मैं व्यक्तिगत रूप से उनके कल्याण का उत्तरदायित्व लेता हूँ।
जन्म लेने वाले के लिए मृत्यु उतनी ही निश्चित है जितना कि मृत होने वाले के लिए जन्म लेना। इसलिए जो अपरिहार्य है उस पर शोक मत करो।
श्री कृष्ण ने कहा है, अगर तुम्हें किसी ने दुखी किया है तो बुरा मत मानना। लोग उसी पेड़ पर पत्थर मारते है, जिस पेड़ पर ज्यादा मीठे फल होते है।
अंत काल में जो मनुष्य मेरा स्मरण करते हुए, देह त्याग करता है वह मेरी शरण में आता है। इसलिए मनुष्य को चाहिए कि अंत काल में मेरा चिंतन करें।
यह सच बात हैं कि भूल करके इन्सान कुछ सीखता है। परन्तु इसका यह मतलब नहीं कि वह जीवन भर भूल करता रहे और कहे कि हम सीख रहे हैं।
कृष्ण कहते हैं, इस जगत में मनुष्य भौतिक वस्तुओं का भोग कर सकता है। अगर वे चाहे तो सब कुछ छीन सकते हैं। मनुष्य कुछ भी नहीं कर सकता।
स्वार्थ से रिश्ते बनाने की कितनी भी कोशिश करें, वो कभी नही बनते हैं। और प्रेम से बने रिश्तों को कितना भी तोड़ने की कोशिश करें, वो कभी नही टूटते।
क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है, जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है। जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है।
आत्मा न तो जन्म लेती है, न कभी मरती है और ना ही इसे कभी जलाया जा सकता है, ना ही पानी से गीला किया जा सकता है, आत्मा अमर और अविनाशी है।
अगर व्यक्ति शिक्षा से पहले संस्कार, व्यापार से पहले व्यवहार और भगवान से पहले माता पिता को पहचान ले तो जिंदगी में कभी कोई कठिनाई नही आएगी।
विषयों का चिंतन करने से विषयों की आसक्ति होती है। आसक्ति से इच्छा उत्पन्न होती है और इच्छा से क्रोध होता है।क्रोध से सम्मोहन और अविवेक उत्पन्न होता है।
कृष्ण कहते हैं जैसे प्राणी अपने पुराने कपड़ों उतार कर फेंक देता है, नए को धारण करता है। उसी प्रकार यह आत्मा पुराने शरीर से त्याग करके नया शरीर प्राप्त करती हैं।
तुम उसके लिए शोक करते हो जो शोक करने के योग्य नही हैं, और फिर भी ज्ञान की बातें करते हो, बुद्धिमान व्यक्ति ना जीवित और ना ही मृत व्यक्ति के लिए शोक करते हैं।
मन की गतिविधियों, होश, श्वास और भावनाओं के माध्यम से भगवान की शक्ति सदा तुम्हारे साथ है और लगातार तुम्हे बस एक साधन की तरह प्रयोग कर सभी कार्य कर रही है।
हर किसी के अंदर अपनी ताकत और अपनी कमज़ोरी होती है। मछली जंगल में नहीं दौड़ सकती और शेर पानी में राजा नही बन सकता, इसलिए अहमियत सभी को देनी चाहिए।
धर्म युद्ध में कोई भी व्यक्ति निष्पक्ष नहीं रह सकता है। धर्म युद्ध में जो व्यक्ति धर्म के साथ नहीं खड़ा है। इसका मतलब है वह अधर्म का साथ दे रहा है, वह अधर्म के साथ खड़ा है।
अगर कोई मनुष्य हमारे साथ बुरा कर रहा है, तो उसे करने दो यह उसका कर्म है। और समय उसके कर्म का फल उसे जरूर देगा। लेकिन हमें कभी भी किसी के साथ बुरा नहीं करना चाहिए, क्योंकि यही हमारा धर्म है।