भारत की प्रसिद्ध भारोत्तोलक कर्णम मल्लेश्वरी की जीवनी Karnam Malleswari Biography In Hindi

Karnam Malleswari Biography In Hindi कर्णम मल्लेश्वरी भारत की प्रसिद्ध भारोत्तोलक (वेटलिफ़्टर) हैं। वे ओलम्पिक खेलों में कांस्य पदक जीतने वाली प्रथम महिला खिलाड़ी हैं। अपने मजबूत हौसले और दिलेर कारनामों से कर्णम मल्लेश्वरी ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर तिरंगे की शान को चार चांद लगाया है। मंच कोई भी हो, लेकिन जीत हर कीमत पर का इरादा रखने वाली इस वेटलिफ्टर की ज़िंदगी संघर्ष और कामयाबी की अदभुत कहानी रही है।

Karnam Malleswari Biography In Hindi

भारत की प्रसिद्ध भारोत्तोलक कर्णम मल्लेश्वरी की जीवनी Karnam Malleswari Biography In Hindi

2000 में सिडनी में हुए ओलंपिक खेलों में भारतीय खिलाड़ी कर्णम मल्लेश्वरी ने महिलाओं के 69 किलो वर्ग में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच डाला। मल्लेश्वरी को 1995 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1996 में उन्हें राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार तथा 1997 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

परिचय :-

कर्णम मल्लेश्वरी का जन्म 1 जून, 1975 को भारतीय राज्य आंध्र प्रदेश के हैदराबाद में हुआ था। उनका जन्मस्थान अम्दलावलासा हैदराबाद से लगभग 800 कि.मी. उत्तर पूर्व में स्थित है। अम्दलावलासा एक छोटा सा शहर है। मल्लेश्वरी के पिता का नाम रामदास है, जो रेलवे सुरक्षा बल (आर. पी. एफ.) में कांस्टेबल हैं। साधारण रेलवे हैड कांस्टेबल की चार बेटियों में से दूसरे नम्बर की मल्लेश्वरी का बचपन बहुत गरीबी में बीता। बहनें बहुत सुबह ही रेल की पटरियों पर कोयला बीनने निकल पड़ती थीं।

मल्लेश्वरी जब केवल 9 वर्ष की थीं, तब वह अपनी बड़ी बहन नरसम्मा के साथ जिम जाती थीं। तभी उनकी रुचि खेलों में जागृत हुई। वैसे 1989 में मानचेस्टर में विश्व चैंपियनशिप में तथा बीजिंग एशियन खेलों में वह भी 20 सदस्यी टीम के साथ भाग लेने गई थीं। मल्लेवरी की छोटी बहन कृष्णा कुमारी भी राष्ट्रीय स्तर की भारोत्तोलक हैं। मल्लेश्वरी का विवाह हरियाणा के यमुना नगर के राजेश त्यागी से हुआ है।

खेल क्षेत्र में आगमन :-

मल्लेश्वरी खेलों के क्षेत्र में 1989 में आईं, जब वह केवल 14 वर्ष की थी। उदयपुर में उनकी शुरुआत बहुत धमाकेदार रही, क्योंकि उन्होंने 6 राष्ट्रीय अंकों तक अपनी पहचान बनाई और फिर धीरे-धीरे उसकी उन्नति होने लगी। थाईलैण्ड की एशियन चैंपियनशिप में उन्हें रजत पदक मिला और फिर 1993 में मेलबार्न की विश्व भारोत्तोलन चैंपियनशिप में उसे तीन कांस्य पदक प्राप्त हुए। हिरोशिमा एशियन खेलों में उन्होंने जिन खेलों में भाग लिया, उसमें एक चीनी खिलाड़ी के बाद द्वितीय स्थान पाया।

इसके बाद 1994 में इस्ताम्बूल में विश्व भारोत्तोलन चैंपियनशिप में 2 स्वर्ण व एक कांस्य पदक जीता। इस स्वर्ण पदक जीतने के वक्त वह एक चीनी खिलाड़ी के बाद दूसरे नम्बर पर आई थीं। हालांकि उस खिलाड़ी ने उतना ही वजन उठाया था, जितना मल्लेश्वरी ने, परन्तु मल्लेश्वरी का वजन अपनी प्रतिद्वन्द्वी से आधा किलो अधिक होने के कारण उन्हें स्वर्ण पदक से हाथ धोना पड़ा था, पर उसके बाद चीनी खिलाड़ी डोप टैस्ट में फेल हो गई और मल्लेश्वरी को स्वर्ण पदक प्रदान किया गया।

विश्व रिकॉर्ड :-

पुणे में हुए राष्ट्रीय खेलों में मल्लेश्वरी ने विश्व-रिकार्ड तोड़ दिया। जर्मनी में हुए विश्व चैंपियनशिप में वह पांचवें स्थान पर रह गईं। फिर अगले वर्ष बुलगारिया में हुई विश्व चैंपियनशिप में अपना स्तर सुधार लिया। 1995 में चीन में हुई विश्व चैंपियनशिप में जर्क में मल्लेश्वरी ने 54 किलो वर्ग में नया विश्व रिकार्ड बनाते हुए 3 स्वर्ण पदक प्राप्त किए। चीनी खिलाड़ी लांग यूलिप के 112.5 किलो के विश्व रिकार्ड को उन्होंने 113 किलो से तोड़ दिया। चैंपियनशिप की शुरुआत में ही मल्लेश्वरी और कुंजारानी को संयुक्त रूप से विश्व में नम्बर एक बताया गया था।

टाइम एशिया के वेब कालम द्वारा मल्लेश्वरी को वर्ष की दक्षिण एशियाई चुना गया था। परन्तु 1997 में मल्लेश्वरी के लिए सब कुछ इतना आसान नहीं था। उस वर्ष यूं तो उन्हें ‘पद्मश्री’ मिला था। उन्होंने विवाह भी किया था और खेलों से 12 महीने का विश्राम भी लिया था। परन्तु उसके बाद जब वह खेलों में लौटीं तो उनकी परफार्मेंस बहुत धीमी हो चुकी थी। हाँलाकि 1998 के बैंकाक के एशियाई खेलों में रजत पदक प्राप्त किया, लेकिन 1999 के एथेन्स चैंपियनशिप से वह बिना कोई पदक लिए लौटीं।

अगले वर्ष उनकी अक्षमता के बारे में कहा जाने लगा और कहा जाने लगा कि उनका वजन बढ़ गया है। इससे मल्लेश्वरी बहुत आहत महसूस कर रही थीं और मन ही मन अपने आलोचकों को चुप कराने के बारे में सोच रही थीं। अपने प्रशिक्षक तारानेंको के साथ प्रशिक्षण आरम्भ कर दिया। उनके प्रशिक्षक को विश्वास था कि वह ओलंपिक पदक अवश्य जीतेगी।

विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक :-

कर्णम मल्लेश्वरी की प्रतिभा को अर्जुन पुरस्कार विजेता मुख्य राष्ट्रीय कोच श्यामलाल सालवान ने पहचाना, जब वह अपनी बड़ी बहन के साथ 1990 में बंगलौर कैम्प में गई थीं। प्रशिक्षक ने उन्हें भारोत्तोलन खेल अपनाने की सलाह दी। बस यहीं से उनका खेल प्रेम जाग उठा और वह पूरी तरह खेल में रम गईं। उनकी मेहनत रंग लाई और मात्र एक वर्ष में भारतीय टीम की दावेदारी में आ गईं। 1992 में वह विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक पाने में सफल रहीं। इसी उत्साह ने उन्हें 1994 व 1995 में विश्व चैंपियन बना दिया। उसके बाद मल्लेश्वरी सफलता की सीढ़ियां चढ़ती गईं।

लेकिन 2000 में जब सिडनी ओलंपिक के लिए खिलाड़ियों का चयन हो रहा था, तब उनका नाम लिस्ट में शामिल किये जाने पर यह कह कर आलोचना की गई कि वह भारतीय सरकार के खर्चे पर टूरिस्ट बन कर जा रही हैं। जब कुंजारानी को हटाकर मल्लेवरी को टीम में चुना गया, तब सभी ओर से उसकी आलोचना की गई। यही कारण था कि जब 19 सितम्बर, 2000 को 69 किलो वर्ग में मल्लेश्वरी का नाम विजेताओं में लिया गया और पुरस्कार दिया गया, तब केवल 7 भारतीय वहां मौजूद थे। भारतीय खिलाड़ियों की बड़ी टीम में से तीन तथा उन 42 पत्रकारों में से, जो ओलंपिक खेलों को कवर करने गए थे, केवल 4 व्यक्ति उस विजय का आनन्द लेने के लिए उपस्थित थे।

मल्लेश्वरी ने अपने दोनों हाथ रगड़ कर अपनी पकड़ मजबूत की और फिर अपने शरीर के भार से दोगुने वजन को झटके से उठा कर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। इस प्रकार भारतीय खेलों के इतिहास में वह प्रथम महिला बनीं, जो ओलंपिक मैडल जीत सकी। इस प्रकार पदक जीतकर अपने सभी आलोचकों का मुंह बंद कर दिया। जो लोग उन्हें ओवर-वेट या बीते समय की खिलाड़ी कह कर उनकी हंसी उड़ा रहे थे, कुछ ही जादुई क्षणों में मल्लेवरी के प्रशंसक बन गए।

पुरस्कार व सम्मान :-

भारत में मल्लेश्वरी के लिए अनेक नकद पुरस्कारों की घोषणा की गई। इस पर मल्लेश्वरी ने कहा- जब मुझे सिडनी ओलंपिक में पदक प्राप्त हुआ तो अनेकों नकद पुरस्कारों की घोषणा की गई, लेकिन जब मैं 1994 व 1995 में विश्व चैंपियन बनी थी, तब इस प्रकार की एक भी घोषणा नहीं की गई। मल्लेश्वरी के लिए पुरस्कारों की घोषणा आंध्र प्रदेश, हरियाणा व महाराष्ट्र की राज्य सरकारों की ओर से की गई। मल्लेश्वरी के दृढ़संकल्प और साधना के परिणाम स्वरूप ही वह सफलता पाकर इस मुकाम पर पहुंचीं। उन्हें देश के सबसे बड़े खेल पुरस्कार अर्जुन पुरस्कार के अलावा पद्मश्री, राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार और के.के. बिरला अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।

मल्लेश्वरी को खेलों में आगे बढ़ाने में हिन्दुजा स्पोर्ट्स फाउंडेशन का बहुत बड़ा योगदान रहा। उन्होंने समय-समय पर उन्हें आर्थिक सहायता के अलावा दूसरी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करायीं। वैसे मल्लेश्वरी की सफलता के पीछे उनकी बहन नरसिंहा का बहुत बड़ा योगदान है। नरसिंहा ने बताया कि घर बसाने के बाद जब उन्हें लगा कि अब वह आंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में बेहतर प्रदर्शन के लायक नहीं है तो उन्होंने सारा ध्यान मल्लेश्वरी पर टिका दिया। मल्लेश्वरी की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि उनका शरीर बचपन से ही तकनीकी तौर पर भारोत्तोलन के अनुरूप था अर्थात् वह खूब मजबूत थीं।

उपलब्धियां :-

1. 1990-1991 में 52 किलो वर्ग में राष्ट्रीय चैंपियन बनीं।

2. 1992 से 98 तक 54 किलो (शारीरिक वजन) वर्ग में राष्ट्रीय चैंपियन बनीं।

3. 1994 के एशियाई चैंपियनशिप मुकाबलों में कोरिया में 3 स्वर्ण पदक जीते।

4. इस्ताबूंल में 1994 के विश्वचैंपियनशिप में 2 स्वर्ण व एक रजत पदक जीता।

5. दक्षिण कोरिया में 1995 के एशियाई चैंपियनशिप के 54 किलो वर्ग में 3 स्वर्ण पदक जीते।

6. चीन में 1995 में विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीते।

7. 1996 में जापान में एशियाई प्रतियोगिता में एक स्वर्ण पदक जीता।

8. 1997 के एशियाई खेलों में 54 किलो वर्ग में रजत पदक जीता।

9. 1998 के बैंकाक एशियाई खेलों में 63 किलो वर्ग में रजत पदक जीता।

10. 2000 में ओसका एशियाई चैंपियनशिप में 63 किलो वर्ग में मल्लेश्वरी ने स्वर्ण जीता, लेकिन अंततः कुल मिलाकर तृतीय स्थान पर रहकर संतोष करना पड़ा।

11. खेलों का सर्वोच्च पुरस्कार अर्जुन पुरस्कार उसे प्रदान किया गया।

12. इसके अगले वर्ष मल्लेश्वरी को राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार दिया गया।

13. उन्हें पद्मश्री पुरस्कार भी प्रदान किया गया।

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कर्णम मल्लेश्वरी कौन से राज्य से हैं?

आंध्र प्रदेश 

कर्णम मल्लेश्वरी कितना वजन उठा लेती है?

कर्णम मल्लेश्वरी कितना वजन उठा लेती है?

मल्लेश्वरी ने 12 साल की उम्र में वजन उठाना शुरू कर दिया था। अब वह 130 किलोग्राम वजन उठा सकती हैं। अपने दस साल के करियर के दौरान, उन्होंने प्रतिष्ठित ओलंपिक कांस्य के अलावा 11 स्वर्ण और तीन रजत पदक जीते हैं। वह नौ साल तक (दो बार 52 किग्रा वर्ग में और सात बार 54 किग्रा वर्ग में) राष्ट्रीय चैंपियन रही हैं।


कर्णम मल्लेश्वरी को राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार कब मिला?

राजीव गांधी खेल रत्न (1995)


कर्णम मल्लेश्वरी क्यों प्रसिद्ध है?

ओलंपिक में पदक जीतने वाली भारत की पहली महिला होने का विशिष्ट सम्मान प्राप्त है

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