Karma bhagavad gita quotes in hindi महाभारत युद्ध के समय जब अर्जुन अपने सामने अपने परिवार को शत्रु की तरह देखकर घबरा जाते हैं तब श्री कृष्ण ने उन्हें कर्म और धर्म पर ज्ञान दिया जिसे आप हम और आप भगवत गीता के नाम से जानते हैं। श्री कृष्ण ने गीता के श्लोक (bhagavad gita karma quotes in hindi) द्वारा अर्जुन को कर्म क्या होता है, ये समझाया था। आज भी कर्म पर गीता के श्लोक (bhagavad gita karma quotes in hindi) लोगों को प्रेरित करते हैं।
भगवत गीता में कुल 700 श्लोक और 18 विशाल अध्याय हैं जिनमें कर्म से संबंधित ज्ञान वर्णित हैं। कहते हैं जो भी रोज भगवत गीता का पाठ करता है वो जीवन में कभी भी किसी भी राह में अटकता नहीं है क्योंकि उसकी हर उलझन का उपाय उसे भगवत गीता में मिल जाता है। आज की पोस्ट में हम आपको कुछ महत्वपूर्ण और सच्चे ज्ञान से रूबरू करवाएंगे, इसलिए पोस्ट के अंत तक बने रहे।
हम आपको सिर्फ कर्म पर गीता के श्लोक (bhagavad gita karma quotes in hindi) ही नहीं बताएंगे बल्कि उनका अर्थ भी बताएंगे। चलिए शुरू करते हैं कर्म पर गीता के श्लोक (bhagavad gita karma quotes in hindi)। सभी श्लोकों को ध्यान से और श्रद्धा से पढ़कर इनसे प्रेरणा लें।
जब भी और जहाँ भी अधर्म बढ़ेगा। तब मैं धर्म की स्थापना हेतु, अवतार लेता रहूँगा।
भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ।
जो लोग निरंतर भाव से मेरी पूजा करते है, उनकी जो आवश्यकताएँ होती है, उन्हें मैं पूरा करता हूँ और जो कुछ उनके पास है, उसकी रक्षा करता हूँ।
हे अर्जुन! मैं वह काम हूँ, जो धर्म के विरुद्ध नहीं है।
हे अर्जुन! जो मेरे आविर्भाव के सत्य को समझ लेता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनर्जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे धाम को प्राप्त होता है।
हे पार्थ! जिस भाव से सारे लोग मेरी शरण ग्रहण करते है, उसी के अनुरूप मैं उन्हें फल देता हूँ।
हे अर्जुन! धन और स्त्री सब नाश रूप है। मेरी भक्ति का नाश नहीं है।
निर्बलता अवश्य ईश्वर देता है किन्तु मर्यादा मनुष्य का मन ही निर्मित करता है।
डर धारण करने से भविष्य के दुख का निवारण नहीं होता है। डर केवल आने वाले दुख की कल्पना ही है।
हे कुन्तीपुत्र! मैं जल का स्वाद हूँ, सूर्य तथा चन्द्रमा का प्रकाश हूँ, वैदिक मन्त्रों में ओंकार हूँ, आकाश में ध्वनि हूँ तथा मनुष्य में सामर्थ्य हूँ।
अनेक जन्म के बाद जिसे सचमुच ज्ञान होता है, वह मुझको समस्त कारणों का कारण जानकर मेरी शरण में आता है। ऐसा महात्मा अत्यंत दुर्लभ होता है।
हे अर्जुन! श्रीभगवान होने के नाते मैं जो कुछ भूतकाल में घटित हो चुका है, जो वर्तमान में घटित हो रहा है और जो आगे होने वाला है, वह सब कुछ जानता हूँ। मैं समस्त जीवों को भी जानता हूँ, किन्तु मुझे कोई नहीं जानता।
जो व्यक्ति निरन्तर और अविचलित भाव से भगवान के रूप में मेरा स्मरण करता है। वह मुझको अवश्य ही पा लेता है।
जो विद्याएं कर्म का सम्पादन करती है,
उन्ही का फल दृष्टिगोचर होता है.
कर्म के दर्पण में व्यक्तित्व का प्रतिबिंब झलकता है.
इंसानियत दिल में होती है हैसियत में नही,
ऊपरवाला कर्म देखता है वसीयत नही।
हर किसी को कर्म भोगना पड़ता है अच्छा या बुरा
कर्म की पहचान समय ख़ुद देता है।
कर्म से ही विजय है भाग्य भी कर्म पर निर्भर है
कर्म है तो सफलता तय है।
कर्म पथ पर चलते रहना ही तो जीवन हमारा है
रुक जाएंगे जिस दिन हम समझो अंत हमारा है
बहुत ताहजुब नही होता मुझे मेरे हालातो से
किसीको जरूर तड़पाया होगा तभी ये हाल है
क्या मिलना है ये कर्म की बात है,
क्या लेना है ये धर्म की बात है।
कर्म करो, काण्ड नहीं 😛
आपका प्रेम 💕 अपने आप चलकर आयेगा !!
कर्म का सब खेल है यह लौट कर तो आएगा
जो आज तुझे रुला रहा कल,कोई और उसे रुलाएगा
जो काम आ पड़े, साधना समझ कर पूरा करो।
अपने कर्म से दोस्ती कर लीजिये, आप बहुत फायदे में रहेंगे.
आज आप प्रकृति का विनाश करेगें
कल ये आपकी सभ्यता का विध्वंस कर देगी ।
कर्म जीवन का मुख्य विषय हैं,
शब्दों का हेर फेर भले ही पकड़ नहीं आता हैं,
पर सच में, हर कोई कर्म से पहचाना जाता हैं ।
‘कर्मा’ और ‘प्रेम’ में सबसे बड़ा अंतर यह है कि-
प्रेम जितना दिया जाये उतना लौट कर कभी नहीं आता…
भलाई का एक छोटा सा काम हजारों प्रार्थनाओं से बढकर है ।
उच्च कर्म महान मस्तिष्क को सूचित करते हैं ।
जो जैसा करता है, वैसा भरता है.
अगर आप किसी और के साथ गलत करने जा रहे हो
तो अपनी बारी का इंतज़ार भी जरूर करना।
आपके कर्मों की गूँज शब्दों की गूँज से भी ऊंची होती है।
कर्म एक ऐसा ढाबा है, जहाँ हमें ऑर्डर करने की जरूरत नहीं पड़ती।
हमने जो पकाया होता है, हमें वही मिलता है।
भगवान से ज्यादा कर्मों से डरिए,
एक बार भगवान तो माफ़ कर सकता है लेकिन कर्म नहीं।
जैसे एक बछड़ा हजार गायों की भीड़ में भी अपनी माँ को ढून्ढ लेता है,
वैसे ही कर्मा करोड़ों लोगों में अपने करता को ढून्ढ ही लेता है।
यदि आपका कर्म अच्छा है, तो आपका भाग्य भी आपके पक्ष में हो
माना कि कर्मों की चक्की धीरे चलती है, पर पीसती भी बहुत बारीक है।
अगर आप हर किसी के प्रति सकारात्मक सोच रखते हैं,
तो वापिस आपको भी ऐसा ही मिलने वाला है।”
कर्म दो दिशाओं में चलता है। यदि हम सदाचार से काम लेते हैं,
तो हम जो बीज बोते हैं, उसका परिणाम अच्छा ही होगा।
यदि हम गैर-पुण्य कार्य करते हैं, तो दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं।
तुम्हारे भीतर से जितनी घृणा निकलती है, उतनी ही वापिस आती है।
कर्म का एक प्राकृतिक नियम है, जो लोग दूसरों को चोट पहुंचाएंगे
वो अंत में टूट जाएंगे और अकेले हो जाएंगे
आपको वही मिलता है जो आप देते हैं, चाहे वह बुरा हो या अच्छा।
कर्म एक बूमरैंग जैसा ही है,
वापस उस व्यक्ति के पास लौटता है जो इसे फेंकता है।
प्रत्येक अपराध और हर दयालुता से,
हम अपने भविष्य को जन्म देते हैं।
अगर किसी ने आपका नुक्सान किया है
तो आप उसका नुक्सान नहीं कर सकते।
क्योंकि आप भी वैसे ही भुगतोगे जैसे वो भुगतेंगे।
किसी और के कर्म के साथ खुद को शामिल करते
समय आपको बहुत सावधान रहना होगा।
कर्म आखिरकार सामने आता है। जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे।
जल्द ही या बाद में, ब्रह्मांड आपको वो परोस देगा जिसके आप हकदार हैं।
आपका कर्म अच्छा होना चाहिए, और बाकी सब अच्छा होगा।
आपके अच्छे कर्म आपके बुरे भाग्य पर हमेशा विजय प्राप्त करेंगे।
लोग जो करते हैं उसके लिए भुगतान करते हैं, कभी कभी उस से भी अधिक।
लोग उनके पापों के लिए दंडित नहीं होते, बल्कि पापों द्वारा होते हैं।
हमने जो कर्म किए हैं, उसका परिणाम हमारे पास आता ही आता है,
आज, कल, सौ साल बाद या फिर सौ जन्म के बाद।
कर्म ही कर्म है। कर्म जीवन में है। आप गलत कर्म करते हैं,
तो आप गलत कर्म ही वापिस पाते हैं।
हम अपने कर्मफल से बच नहीं सकते। हमारे कर्म ही आधार हैं जिस पर हम खड़े हैं।
कर्म केवल परेशानियों के बारे में नहीं है, बल्कि उनपर विजय पाने के बारे में भी है।
समस्याएँ हों या फिर सफलताएँ, दोनों ही हमारे कर्मों के परिणाम हैं।
लोगों का आपके साथ कैसा व्यवहार है, यह उनका कर्म है
, आप उनके साथ कैसा व्यवहार करते हैं ये आपका कर्म है।
आप जो अपने जीवन को देते हो, जीवन भी वही आपको वापिस देता है।
तुम्हारे द्वारा की गयी नफरत कभी न कभी वापिस तुम्हारे पास जरूर आएगी।
दूसरों से प्यार करोगे तो तुम्हें भी प्यार ही मिलेगा।
किसी से बदला लेने के लिए कभी समय बर्बाद मत करो।
जो लोग आपको चोट पहुंचाते हैं उन्हें अंत में कर्मों को भोगना पड़ता है।
अगर आप दुनिया को एक अच्छी चीज देते हैं,
तो समय के साथ आपका कर्म अच्छा होगा,
और आपको भी अच्छी चीज़ ही मिलेगी।
कर्मा हमारे दिलों से ही शुरू होता है और दिलों पर ही ख़तम हो जाता है।
जिंदगी में सफलता पानी है तो कर्म ही सबसे पहला और सबसे बड़ा रास्ता है।
कर्मा दो तरह का होता है,
कर्मा के अनुसार जिसे आप अपना कहते हैं
उन्हें धोखा देना सबसे दुखद,
घृणित और अपमानजनक बात है।
कर्म के नियम से कोई नहीं बच सकता।
ये केवल जीवनकाल में ही नहीं, बल्कि मृत्यु के बाद भी काम करता है।
इससे पहले कि आप किसी से बदला लेना शुरू करें, एक कब्र अपने लिए भी खोदें।
आज जो भी कुछ हो रहा है वो कोई चमत्कार नहीं है।
ये अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी हो सकता है।
यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपने अतीत में क्या किया है।
वर्तमान में अच्छा करो ताकि भविष्य में आपके साथ बुरा न हो। यही कर्मा है।
किस्मत भी उन्हीं का साथ देती है जिनके कर्म मजबूत होते हैं
हर किसी को आज़ादी है कि वो जो चाहे वो कर्म करे,
लेकिन उन कर्मों के परिणाम उसके हाथ में नहीं।
अगर आप दुनिया के लिए कुछ अच्छा करोगे तो
समय के साथ साथ दुनिया से भी आपको कुछ अच्छा मिलेगा। यही कर्मा है।
इस विश्वास से जीने की कोशिश करो
कि कर्म ही सब कुछ है।
जो कर्म आप करोगे वही आपको भोगना भी पड़ेगा।
कर्म कभी न कभी जरूर सामने आता है। जैसा करोगे, वैसा ही भरोगे।
आपके द्वारा किए गए पाप अपना एक नया नर्क बनाते हैं
और आपके द्वारा किए गए पुण्य एक नया स्वर्ग बनाते हैं।
बदला लेने के लिए मत सोचो। आराम से बैठो और प्रतीक्षा करो।
जिन लोगों ने आपके साथ बुरा किया है, अंत में उनके साथ भी बुरा ही होगा।
परिस्थितियों को संभालने के लिए कर्म बहुत नायाब तरीका है।
आपके बस आराम से बैठना है और देखना है।
आप जो चाहे कर सकते हैं,
वो आपके हाथ में हैं लेकिन कर्मों का फल आपके हाथ में नहीं।
आप जो भी क्रिया करोगे उसकी प्रतिक्रिया जरूर होगी।
यही ब्रह्मांड का नियम है और यही कर्मा है।
इस से किसी को नहीं बख्शा जाता।
हमारे साथ होने वाली हर चीज के पीछे एक कारण है और वो कारण कर्मा है।
कर्मा क्या है? सीधे शब्दों में कहें तो ये क्रिया की प्रतिक्रिया है.. चाहे वो अच्छी है या बुरी।
कोई भी चीज सीधी रेखा में नहीं चलती, बात चाहे दिल की धड़कन की हो या फिर कर्म की ।
हर व्यक्ति को उसके कर्म करने की पूरी
आज़ादी है लेकिन कर्म के परिणामों में चुनाव, उसके हाथ में नही।
जिस दिन आप अपने लिए बोलना सुरु करेंगे,
दुनिया आपके पीछे से हटकर आपके सामने खड़ी हो जाएगी।।
तुम्हारे साथ जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है वो भी अच्छा है और जो होगा वो भी अच्छा होगा।
गीता के अनुसार जिंदगी में हम कितने सही हैं और कितने गलत हैं यह केवल दो लोग जानते हैं एक परमात्मा और दूसरी हमारी अंतरात्मा..!
जब तक शरीर है तब तक कमजोरियां तो रहेगी ही इसलिए कमजोरियों की चिंता छोड़ो और जो सही कर्म है उस पर अपना ध्यान लगाओ..!
अर्जुन तुम भला क्यों रोते हो? तुमने जो खोया, क्या वह तुमने पैदा किया था। आज जो तुम्हारा है वह कल किसी और का होगा। क्योंकि परिवर्तन ही संसार का नियम है।
किसी का अच्छा ना कर सको तो बुरा भी मत करना क्योंकि दुनिया कमजोर है लेकिन दुनिया बनाने वाला नहीं..!
यदि कोई व्यक्ति विश्वास के साथ इच्छित वस्तु को लेकर नित्य चिंतन करता है, तो वह जो चाहे वह बन सकता है।
सच्चा धर्म यह है कि जिन बातों को इंसान अपने लिए अच्छा नहीं समझता उन्हें दूसरों के लिए भी प्रयोग ना करें..!
कोई भी व्यक्ति अपने विश्वास से बनता है। वह जैसा विश्वास करता है, उसी अनुरूप बन जाता है।
मेरे लिए समस्त प्राणी समान हैं। ना तो कोई मुझे अत्यधिक प्रिय है और ना ही कम। लेकिन जो मेरी भक्ति पूरे मन से करते हैं, मैं सदैव आवश्यकता पड़ने पर उनके काम आता हूं।
मन की शांति से बढ़कर इस संसार में कोई भी संपत्ति नहीं है।
जो मनुष्य फल की इच्छा का त्याग करके केवल कर्म पर ध्यान देता है, वह अवश्य ही जीवन में सफल होता है।
कोई भी इंसान जन्म से नहीं बल्कि अपने कर्मो से महान बनता है।
जो व्यक्ति क्रोध करता है, उसके मन में भ्रम पैदा होता है, जिससे उसका बौद्धिक तर्क नष्ट हो जाता है। और तभी व्यक्ति का धीरे धीरे पतन होने लगता है।
गीता में लिखा है जब इंसान की जरूरत बदल जाती है तब इंसान के बात करने का तरीका बदल जाता है।
इस सम्पूर्ण संसार में अपकीर्ति मृत्यु से भी अधिक खराब होती है।
सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता ना इस लोक में है ना ही कहीं और।
जीवन में सफलता का ताला दो चाबियों से खुलता है। एक कठिन परिश्रम और दूसरा दृढ़ संकल्प।
जो मन को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए वह शत्रु के समान कार्य करता है।
कठिन परिश्रम से बचने के लिए व्यक्ति को भाग्य और ईश्वर की इच्छा जैसे बहानों के बजाय चुनौतियों का सामना करना चाहिए।
गीता में कहा गया है कोई भी अपने कर्म से भाग नहीं सकता कर्म का फल तो भुगतना ही पड़ता है।
मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है, जैसा वह विश्वास करता है, वैसा वह बन जाता है।
जो मनुष्य प्रतिदिन खाने, सोने और आमोद प्रमोद के कार्यों में लिप्त रहता है। वह नियमित तौर पर योगाभ्यास करके समस्त क्लेशों से छुटकारा पा सकता है।
जब इंसान अपने काम में आनंद खोज लेते हैं तब वे पूर्णता प्राप्त करते है।
श्रीमद भागवत गीता का मुख्य उद्देश्य मानव कल्याण करना है। इसलिए प्रत्येक मनुष्य को सदैव मानव कल्याण की ओर अग्रसरित रहना चाहिए।
माफ करना और शांत रहना सीखिए ऐसी ताकत बन जाओगे कि पहाड़ भी रास्ता देंगे।
व्यक्ति को अपनी इन्द्रियों को वश में रखने के लिए बुद्धि और मन को नियंत्रित रखना होगा।
जो होने वाला है वो होकर ही रहता है, और जो नहीं होने वाला वह कभी नहीं होता,ऐसा निश्चय जिनकी बुद्धि में होता है, उन्हें चिंता कभी नही सताती है।
किसी भी व्यक्ति को ना तो समय से पहले और ना ही भाग्य से अधिक कुछ मिलता है। लेकिन उसे सदैव पाने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए।
इंसान हमेशा अपने भाग्य को कोसता है यह जानते हुए भी कि भाग्य से भी ऊंचा उसका कर्म है जिसके स्वयं के हाथों में है।
व्यक्ति को आत्म ज्ञान के माध्यम से संदेह रूपी अज्ञानता को समाप्त करना चाहिए।
मै उन्हे ज्ञान देता हूँ जो सदा मुझसे जुड़े रहते है और जो मुझसे प्रेम करते है ।
सत्य कभी दावा नहीं करता कि मैं सत्य हूं लेकिन झूठ हमेशा दावा करता हैं कि सिर्फ मैं ही सत्य हूं।
परिवर्तन संसार का नियम है समय के साथ संसार मे हर चीज परिवर्तन के नियम का पालन करती है ।
हालांकि मैं भूत, भविष्य और वर्तमान काल के तीनों जीवों को जानता हूं लेकिन मुझे वास्तव में कोई नही जानता है।
संयम , सदाचार , स्नेह एंव सेवा ये गुण सत्संग के बिना नही आते.
मनुष्य जिस रूप में ईश्वर को याद करता है, ईश्वर भी उसे उसी रूप में दर्शन देते हैं।
अपने कर्तव्य का पालन करना ही प्रकृति द्वारा निर्धारित किया हुआ हो ,वह कोई पास नही है।
सज्जन व्यक्तियों को सदैव अच्छा व्यवहार करना चाहिए। क्योंकि इन्हीं के पद चिन्हों पर सामान्य व्यक्ति अपने रास्ते चुनता है।
बुद्धिमान को अपनी चेतना को एकजुट करना चाहिए और फल के लिए इच्छा छोड़ देनी चाहिए ।
मन अवश्य ही चंचल होता है लेकिन उसे अभ्यास और वैराग्य के माध्यम से वश में लाया जा सकता है।
इन्द्रियो की दुनिया मे कल्पना सुखो की प्रथम शुरुआत है और अन्त भी जो दुख को जन्म देता है ।
इस सम्पूर्ण संसार में कोई भी व्यक्ति महान नही जन्मा होता है। बल्कि उसके कर्म उसे महान बनाते हैं।
जीवन मे कभी गुस्सा या क्रोध ना करे यह आपके जीवन के ध्वंस कर देगा ।
हे पार्थ! मैंने और तुमने अपने कर्तव्यों को निभाने के लिए धरती पर कई अवतार लिए हैं। लेकिन मुझे याद है और तुम्हें नहीं।
वासना , क्रोध और लालच नरक के तीन दरवाजे है ।
जो मनुष्य जिस देवता की विश्वास के साथ भक्ति करता है। मैं उस व्यक्ति की उसी देवता में दृढ़ता बढ़ा देता हूं।
सभी काम छोड़कर बस भगवान मे पूर्ण रूप से समर्पित हो जाओ ,मै तुम्हे सभी पापो से मुक्त कर दूंगा ।
जो व्यक्ति मैं और मेरा इत्यादि की भावना से मुक्त हो जाता है, उसे जीवन में शांति की प्राप्ति होती है।
आत्म ज्ञान की तलवार से काटकर अपने हृदय के अज्ञान के संदेह अलग कर दो ,अनुशासित रहो, उठो और कार्य करो ।
जिस प्रकार से प्राकृतिक मौसम में बदलाव आता है। ठीक उसी प्रकार से, जीवन में भी सुख दुख आता रहता है। वह कभी स्थाई नहीं रहते हैं।
इस जीवन मे ना कुछ खोता है , ना व्यर्थ होता है ।
जो लोग परमात्मा को पाना चाहते है, वह ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं।
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि मैं इस संसार की सुगंध हूं, अग्नि की ऊष्मा हूं और समस्त जीवित प्राणियों का आत्म संयम हूं।