जीवित्पुत्रिका व्रत के बारे में जानकारी Jivitputrika Vrat Information In Hindi

Jivitputrika Vrat Information In Hindi हॅलो‌ ! इस पोस्ट में हम जीवित्पुत्रिका व्रत के बारे में जानकारी लेने वाले हैं । जीवित्पुत्रिका व्रत हर साल अश्विन माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता हैं । यह व्रत माताएं अपने संतान की लंबी आयु , समृद्धी और अच्छी सेहत के लिए रखती हैं । इस व्रत को जितिया व्रत , जिउतिया व्रत और ज्युतिया व्रत इन नामों से भी जाना जाता हैं । यह व्रत निर्जला होता हैं ।यह व्रत तीन दिन होता हैं । ऐसा माना जाता हैं की यह व्रत करने से संतान की बुरी परिस्थिती में रक्षा होती हैं और संतान के जीवन में हमेशा खुशिया बनीं रहती हैं ।यह व्रत ज्यादा से ज्यादा उत्तर प्रदेश , बिहार , पश्चिम बंगाल , झारखंड इन राज्यों में किया जाता हैं ।

Jivitputrika Vrat Information In Hindi

जीवित्पुत्रिका व्रत के बारे में जानकारी Jivitputrika Vrat Information In Hindi

जीवित्पुत्रिका व्रत पूजा विधि –

जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन सुबह जल्दी उठना चाहिए और स्नान करना चाहिए ।‌ स्नान करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहने और घर के मंदिर में दीप लगाए । इसके बाद जीमूतवाहन की पूजा करें । कूश से बनी हुई जीमूतवाहन की प्रतिमा को पुष्प , धूप – दीप और चावल अर्पित करें । इस व्रत में मिट्टी में गाय का गोबर मिलाकर उससे चील और सियारिन की मुर्ती बनानी चाहिए ।‌ इन मूर्तियों के माथे पर लाल टिका लगवाए और इसके बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुननी चाहिए । तीसरे दिन व्रत का पारण करें और ब्राम्हण को दक्षिणा दें ।

जीवित्पुत्रिका व्रत कथा –

पौराणिक कथाओं के अनुसार , एक बार महाभारत के युद्ध में अश्वत्थामा के पिता की मृत्यु हो गई । इस वजह से अश्वत्थामा बहोत नाराज हो गए थे । अश्वत्थामा के मन में बदले की भावना आ रही थी । एक बार अश्वत्थामा पांडवों के शिविर में घुस गया । उस वक्त शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे ।

अश्वत्थामा को लगा की वह पांडव हैं और उसने उन पांच लोगों को मार डाला । लेकिन वे सब द्रौपदी की पांच संतान थी । इसके बाद अर्जुन अश्वत्थामा को बंदी बनाया और उसका दिव्य मणी छीन लिया । अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में बच्चा पल रहा था । अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए उत्तरा के पेट में पल रहे बच्चे को मार डाला ।

उस वक्त भगवान श्री कृष्ण ने अपने सभी पूण्यों का फल उत्तरा के अजन्मी संतान को दे दिया और उत्तरा के पेट में जो बच्चा था उसे फिरसे जीवित कर दिया । पेट में मरकर फिरसे जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा । उस वक्त से संतान की लंबी आयु , समृद्धी और अच्छी सेहत के लिए जीवित्पुत्रिका का व्रत मनाने जाने लगा ।‌

जिमुतवाहन की कथा –

जिवित्पुत्रिका व्रत के संबंधित एक पौराणिक कथा हैं । सत्ययुग में जिमुतवाहन नाम का‌ एक राजकुमार था । वह बहोत ही परोपकारी और उदार था । जिमूतवाहन के पिता ने जिमुतवाहन को सिंहासन पर बिठाया और वह वन में जीवन बिताने के लिए चले गए । जिमुतवाहन का राजपाट में मन नहीं लग रहा था । जिमुतवाहन ने राजपाट की जिम्मेदारी अपने भाईयों के हाथों में सौंप दी और वो जंगल में अपने पिता की सेवा करने के लिए चला गया ।

जंगल में जाकर जिमुतवाहन‌ का विवाह मलयवती नाम की कन्या के साथ हुआ । एक दिन वे वन में भ्रमण करते हुए आगे चले गए ।‌ उधर उन्होंने एक वृद्धा को रोते हुए देखा । वह उसके पास चले गए और उन्होंने उस वृद्धा को रोने का कारण पूछा ।‌ उस स्त्रीने बताया की मैं नागवंश की स्त्री हूं । मुझे एक पुत्र हैं । एक बार नागों ने गरुड़ को भोजन के लिए हर दिन एक नाग देने की प्रतिज्ञा की । आज मेरे पुत्र के बलि का दिन हैं ।

जिमुतवाहन ने उस वृद्धा स्त्री से कहा की – डरो मत , मैं तुम्हारे पुत्रों के प्राणों की रक्षा करूंगा । मैं आज तुम्हारी पुत्र की जगह स्वयं को लाल कपड़ों में ढककर शिला पर लेटूंगा । जिमुतवाहन ने उस स्त्री के पूत्र के हाथ से लाल कपड़ा और उसे लपेटकर वो शिला पर लेट गया । थोड़े देर बाद गरुड़ आया और लाल कपड़े में लिपटे हुए जिमुतवाहन को पंजे से पकड़ लिया और पहाड़ के शिखर पर जाकर बैठ गया । गरुड़ ने पकड़े हुए प्राणी के आंखों में आंसु देखें । यह देखकर गरुड़ को आश्चर्य हुआ ।

गरुड़ ने उससे परिचय पूछा तब जिमुतवाहन ने गरुड़ को सारी बात बता दी । जिमुतवाहन की बहादुरी और और दूसरों‌ की रक्षा करने के लिए खुद का बलिदान देते हुए देखकर गरुड़ बहोत प्रभावित हो गया । इसके बाद गरुड़ ने जिमुतवाहन को नागों को न मारने का वचन दिया और जिमुतवाहन को जीवनदान दिया । इस तरह से जिमुतवाहन के साहस और बलिदान से नाग जाति की रक्षा हूई । उस वक्त से संतान की रक्षा और सुख के लिए जिमुतवाहन की पूजा और व्रत की शुरुआत हुई ।

जिवित्पुत्रिका व्रत के दिन क्या करें –

1 ) जिवित्पुत्रिका व्रत के दिन एक दिन पहले से ही सात्विक भोजन करना चाहिए ।

2 ) जिवित्पुत्रिका व्रत के दिन निर्जला और निराहार रहना चाहिए । व्रत के एक दिन पहले भोजन करना चाहिए और भरपूर मात्रा में पानी पिना चाहिए ।

3 ) इस दिन जिवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुननी या पढ़नी चाहिए । इस दिन भजन किर्तन करना चाहिए ।

4 ) इस दिन पूजा के लिए कुश से बनी हुई जीमूतवाहन की मूर्ति का उपयोग करना चाहिए ।‌

5 ) इस दिन माताओं को भगवान से अपने संतान की रक्षा और अच्छे जीवन के लिए प्रार्थना करनी चाहिए ।

6 ) इस दिन धुप में जाने से बचना चाहिए क्योंकी धुप के कारण शरीर में पानी की कमी हो सकती हैं ।

7 ) व्रत के तीसरे दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान और पूजा – पाठ करने के बाद व्रत का पारणा करना चाहिए ।‌

जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन क्या नहीं करना चाहिए –

1 ) जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन झूठ नहीं बोलना चाहिए और दूसरों की निंदा नहीं करनी चाहिए ।‌

2 ) इस दिन चोरी और कोई भी ग़लत कार्य नहीं करने चाहिए ।

3 ) इस दिन किसीको दुख होगा ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए और वाद विवाद भी नहीं करना चाहिए ।

4 ) इस दिन किसी के भी प्रती गलत विचार मन में नहीं लाने चाहिए ।

5 ) इस दिन संतान का मन नहीं दुखाना चाहिए ।

इस पोस्ट में हमने जीवित्पुत्रिका व्रत के बारे में जानकारी ली । हमारी पोस्ट शेयर जरूर किजीए ।‌

धन्यवाद !

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जीवित्पुत्रिका व्रत में किसकी पूजा की जाती है?

जितिया व्रत अश्विन मास की कृष्ण अष्टमी तिथि को रखा जाता है. अष्टमी की तिथि पर पूरे दिन निर्जल व्रत रखा जाता है. इस दिन जीमूतवाहन के पूजन का विधान है

जीवित्पुत्रिका व्रत का पारण कैसे किया जाता है?

स्नान आदि करने के बाद सूर्य नारायण की प्रतिमा को स्नान कराएं। धूप, दीप आदि से आरती करें और इसके बाद भोग लगाएं। मिट्टी और गाय के गोबर से चील व सियारिन की मूर्ति बनाएं।


जितिया व्रत की कहानी क्या है?

यह माना जाता है कि एक बार, एक गरुड़ और एक मादा लोमड़ी नर्मदा नदी के पास एक हिमालय के जंगल में रहते थे। दोनों ने कुछ महिलाओं को पूजा करते और उपवास करते देखा, और खुद भी इसे देखने की कामना की। उनके उपवास के दौरान, लोमड़ी भूख के कारण बेहोश हो गई और चुपके से भोजन किया।

जितिया के पारण में क्या खाया जाता है?

व्रत के तीसरे दिन महिलाएं पारण करती हैं। सूर्य को अर्घ्‍य देने के बाद ही महिलाएं अन्‍न ग्रहण कर सकती हैं। मुख्‍य रूप से पर्व के तीसरे दिन झोर भात, मरुवा की रोटी और नोनी का साग खाया जाता है। अष्टमी को प्रदोषकाल में महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती है

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