जगन्नाथ रथयात्रा के बारे में जानकारी Jagannath Rath Yatra Information In Hindi

Jagannath Rath Yatra Information In Hindi हॅलो ! इस पोस्ट में हम जगन्नाथ रथयात्रा के बारे में जानकारी लेने वाले हैं । जगन्नाथ रथयात्रा भारत में बहोत महत्त्वपूर्ण हैं । यह यात्रा भगवान जगन्नाथ की होती हैं । भगवान जगन्नाथ श्री कृष्ण के ही अवतार हैं । जगन्नाथ रथयात्रा महोत्सव दस दिनों के लिए मनाया जाता हैं । जगन्नाथ रथयात्रा हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष के दिन निकाली जाती हैं ।

Jagannath Rath Yatra Information In Hindi

जगन्नाथ रथयात्रा के बारे में जानकारी Jagannath Rath Yatra Information In Hindi

जगन्नाथ रथयात्रा में तीन रथ सजाए जाते हैं । जगन्नाथ रथयात्रा पूरी में बहोत धुमधाम से मनाई जाती हैं । जगन्नाथ रथयात्रा की तैयारियां कुछ महिने पहिले से ही की जाती हैं । पूरी में जगन्नाथ रथ यात्रा के लिए लाखों लोग जाते हैं । जगन्नाथ रथयात्रा महोत्सव में भगवान कृष्ण , उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा को रथों में बैठाकर गुंडीचा मंदिर में लेकर जाते हैं ‌।

जगन्नाथ रथयात्रा क्यों मनाई जाती हैं –

जगन्नाथ रथयात्रा के संबंधित बहोत कहानीयां हैं । उन कहानीयों के कारण जगन्नाथ रथयात्रा का आयोजन किया जाता हैं । मान्यता के अनुसार , गुंडीचा मंदिर में एक देवी हैं और वह भगवान कृष्ण की मासी हैं । वह भगवान कृष्ण को उनके यहां रहने आने के लिए आमंत्रित करती हैं और इस वजह से भगवान कृष्ण , बलराम और सुभद्रा उनके मासी के यहां रहने जाते हैं । ऐसी भी मान्यता हैं की भगवान कृष्ण कंस का वध करने के बाद लोगों को दर्शन देने के लिए मथुरा में रथ लेकर घुमने के लिए जाते हैं ।

मान्यता के अनुसार भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा अपने मायके में आती हैं और अपने भाइयों के पास नगर में घुमने की इच्छा व्यक्त करती हैं । इसके बाद भगवान कृष्ण , बलराम और सुभद्रा रथ में घुमने के लिए जाते हैं । ऐसी भी मान्यता हैं की एक बार कंस मामा उन्हें मथुरा बुलाते हैं ‌। इसलिए भगवान कृष्ण , बलराम और सुभद्रा रथ में सवार होकर मथुरा जाते हैं ।

एक बार कृष्ण की रानीयां माता रोहिणी को उनकी रासलीला सुनाने को कहती हैं । माता रोहिणी को ऐसा लगता हैं की कृष्ण की गोपियों के साथ की रासलीला को उनकी बहन सुभद्रा को नहीं सुननी चाहिए । इसलिए माता रोहिणी सुभद्रा को भगवान कृष्ण और बलराम के साथ रथयात्रा के लिए भेज देती हैं ।

जब भगवान कृष्ण , बलराम और सुभद्रा एक साथ होते हैं तब वहां नारदजी प्रकट हो जाते हैं और नारदजी उन तीनों को एकसाथ देखकर बहोत खुश हो जाते हैं । इसके बाद नारदजी प्रार्थना करते हैं की इन तीनों के दर्शन हर साल ऐसे ही होते रहें । नारदजी की यह प्रार्थना सुन ली जाती हैं और उस वक्त से हर साल रथयात्रा द्वारा सबको उनके दर्शन होते रहते हैं ।

जगन्नाथ रथयात्रा कैसे मनाई जाती हैं –

जगन्नाथ रथयात्रा बहोत धुमधाम से मनाई जाती हैं । भारत में जिस जगह प्रमुख तीर्थ स्थल है उस जगहों पर जगन्नाथ रथयात्रा का आयोजन किया जाता हैं । भारत के बाहर भी जहां हिंदू लोगों की आबादी हैं वहां जगन्नाथ रथयात्रा मनाई जाती हैं । जगन्नाथ रथयात्रा की शुरुआत होने से कुछ दिन पहले ही भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा को 108 घड़े के पानी से नहलाया जाता हैं ।

जगन्नाथ रथयात्रा में तीन रथ निकाले जाते हैं । यह रथ भगवान जगन्नाथ , उनके भाई बलराम और उनकी बहन सुभद्रा के होते हैं । भगवान जगन्नाथ का रथ सबसे बड़ा होता है और सबसे आगे होता हैं । इन रथों को अलग अलग रंगों के कपड़ों से सजाया जाता हैं । इन रथों के आगे 4 घोड़े होते हैं । जगन्नाथ रथयात्रा के दौरान भाई बलराम और बहन सुभद्रा के भी रथ निकाले जाते हैं । मंत्रोच्चार के साथ रथयात्रा बहोत धुमधाम से शुरू होती हैं ।

इस रथयात्रा में हजारों लोग बहोत श्रद्धा के साथ रस्सी से रथ को खिचते हैं ।ऐसी मान्यता हैं की रथयात्रा में रथ को रस्सी से खिचने से मोक्ष की प्राप्ती होती हैं । इसलिए बहोत लोगों की रथ खिचने की इच्छा होती हैं । जगन्नाथ रथयात्रा गुंडीचा मंदिर पहुंचकर संपन्न हो जाती हैं।

जगन्नाथ रथयात्रा के रथों के बारे में जानकारी –

जगन्नाथ रथयात्रा में तीन रथ हैं एक भगवान कृष्ण का , दूसरा उनके भाई बलराम का और तिसरा उनकी बहन सुभद्रा का । भगवान कृष्ण के रथ की ऊंचाई 45 फीट हैं । इस रथ में 16 पहिये हैं । इनका व्यास 7 फीट हैं । यह रथ दारुका के द्वारा चलाया जाता हैं ‌। रथ में त्रैलोक्यमोहिनी द्वारा झंडा लहराया जाता हैं ।

इस रथ को पूरी तरह से लाल और पीले कपड़े से सजाया जाता हैं ‌। इस रथ में चार घोड़े होते हैं । इस रथ की रक्षा गरुड़ द्वारा की जाती हैं ।‌ इस रथ को रस्सी के द्वारा खींचा जाता हैं , उसे शंखचुडा नागनी इस नाम से जाना जाता हैं । इस रथ में कृष्णा , वर्षा , राम , गोबर्धन , नरसिंघा , नारायण , हनुमान , त्रिविक्रम और रूद्र यह विराजमान होते हैं ।

भगवान कृष्ण के भाई बलराम के रथ की ऊंचाई 43 फीट थी । इस रथ में 14 पहिये हैं । यह रथ मताली नाम के सारथि द्वारा चलाया जाता हैं और रथ में उनानी द्वारा झंडा लहराया जाता हैं । इस रथ को पूरी तरह से हरे , लाल और निले रंग के कपड़े से सजाया जाता हैं । इस रथ की रक्षा वासुदेव द्वारा की जाती हैं । इस रथ को बासुकी नागा इस नाम के रस्सी द्वारा खींचा जाता हैं ।इस रथ में गणेश , कार्तिक , शेषदेव , मृत्युंजय , सर्वमंगला , हटायुध्य , मुक्तेश्वर , नाताम्वारा , प्रलाम्बरी यह विराजमान होते हैं ।

भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा के रथ की ऊंचाई 42 फीट होती हैं और इस रथ में 12 पहिये होते हैं । यह रथ अर्जून नाम के सारथी द्वारा चलाया जाता हैं । इस रथ में नंद्बिक द्वारा झंडा लहराया जाता हैं । इस रथ को पूरी तरह से काले रंग के कपड़े से सजाया जाता हैं । इस रथ की रक्षा जयदुर्गा के द्वारा की जाती हैं । इस रथ को स्वर्णचुडा नागनी नाम के रस्सी द्वारा खीचा जाता हैं । इस रथ में मंगला , चंडी , विमला , वनदूर्गा , वाराही , उग्रतारा , चामुंडा , शुलिदुर्गा , श्यामकली विराजमान होती हैं ।

‌ इस पोस्ट में हमने जगन्नाथ रथयात्रा के बारे में जानकारी ली । हमारी पोस्ट शेयर जरूर किजीए ।

धन्यवाद !

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क्यों निकाली जाती है जगन्नाथ रथ यात्रा?

हिन्दुओं के लिए भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का विशेष धार्मिक महत्व है। इस दिन श्रद्धालु रथ यात्रा के दौरान निकलने वाले जुलूस में रथ को खींचना पवित्र मानते हैं। ऐसा कहा जाता है कि रथ को छूने और खींचने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

जगन्नाथ रथ यात्रा कितने दिन की होती है?

गन्‍नाथ रथयात्रा दस दिवसीय महोत्सव होता है। यात्रा की तैयारी अक्षय तृतीया के दिन श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रथों के निर्माण के साथ ही शुरू हो जाती है। भारत के चार पवित्र धामों में से एक पुरी के 800 वर्ष पुराने मुख्य मंदिर में योगेश्वर श्रीकृष्ण जगन्नाथ के रूप में विराजते हैं।

जगन्नाथ यात्रा का क्या महत्व है?

माना जाता है कि जो लोग भी सच्चे भाव से इस यात्रा में शमिल होते हैं, उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती है. इस यात्रा के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. जगन्‍नाथजी की रथयात्रा में शामिल होने का पुण्य सौ यज्ञों के बराबर माना जाता है.

जगन्नाथ मंदिर की परछाई क्यों नहीं दिखती?

इसके पीछे का कारण यह है कि सूर्य की किरणें मदिर से टकराकर मंदिर पर ही परछाई बनाती हैं। मंदिर के ढांचें पर ही परछाई बनने के कारण वह जमीन तक नहीं पहुंचती और न ही नजर आती है

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