प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ भास्कराचार्य की जीवनी Bhaskaracharya Biography In Hindi

Bhaskaracharya Biography In Hindi प्राचीन भारतीय विज्ञान यद्यपि तत्कालीन समय में अपने युग से कही आगे था किन्तु कई मामलो में वह अंधविश्वासों एवं संकीर्णताओ से घिरा हुआ था। भास्कराचार्य ने इसे नवीन वैज्ञानिक दृष्टि दी। उन्होंने सारी घटनाओं तथा वस्तुओ को विज्ञान की कसौटी पर कसने की एक सोच भी दी थी।

Bhaskaracharya Biography In Hindi

प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ भास्कराचार्य की जीवनी Bhaskaracharya Biography In Hindi

खगोल तथा गणित संबधी उन्होंने जो जानकारियाँ उस समय दी थी उसे पश्चिमी विज्ञान 500 साल बाद ही हासिल कर पाया था। भास्कराचार्य का जन्म 12वी सदी में कर्नाटक के बीजापुर नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता महेश्वर भट्ट को गणित, वेद तथा अन्य शास्त्रों का अच्छा ज्ञान था।

अपने पुत्र की असीमित प्रतिभा को पहचानकर उन्होंने बाल्यावस्था में ही उसे गणित तथा ज्योतिष की अच्छी शिक्षा प्रदान की। अपने पुत्र के नामकरण उन्होंने किया – भास्कराचार्य। भास्कराचार्य ने 36 साल की आयु में सिद्धांतशिरोमणि नामक ग्रन्थ लिखा। उनके इस ग्रन्थ का अरबी भाषा में अनुवाद किया गया। भास्कराचार्य ने संस्कृत भाषा में लिखी गयी पुस्तक को सुबोध बनाने के लिए इसकी टीका लिखी, जिसे वासनाभाष्य नाम दिया गया। सिद्धांतशिरोमणि के चार अध्याय है। यह पुस्तक गणितीय ज्ञान की दृष्टि से अद्भुद थी।

भास्कराचार्य के पुत्र लक्ष्मीधर हुए, जिन्होंने ज्योतिष एवं गणित में अच्छा ज्ञान प्राप्त किया। कहा जाता है कि उस समय के कुछ ज्योतिषीयो ने यह कहा था कि वह अपनी पुत्री लीलावती का विवाह न करे। उनके इस निर्णय को चुनौती देते हुए भास्कराचार्य ने शुभ मुहूर्त तय कर सही समय की सुचना हेतु नाड़िका यंत्र स्थिर किया। यह एक ताम्बे के बर्तन होता है जिसके पेंदे में एक छोटा छेद होता है जिससे पानी बर्तन में जमा होता था। निश्चित जल स्तर आने पर समय की गणना हो जाती थी।

सज धजकर लीलावती कौतहुलवश उस नाडिका यंत में झाँकने लगी तो उसके वस्त्र का मोती आकर यंत्र के पेंदे में जाकर धंस गया, जिसकी वजह से पानी गिरना बंद हो गया। शुभ मुहूर्त का पता नही चल पाया। भास्कराचार्य ने अपनी दुखी पुत्री को सांत्वना देने हेतु कहा कि मै तुम्हारे नाम से एक ऐसा ग्रन्थ लिखूंगा जो अमर होगा। भास्कराचार्य ने सूर्यसिद्धांत नामक जो ग्रन्थ लिखा, उसमे पाटीगणित, बीजगणित, गणितताध्याय, गोलाध्याय नामक चार अध्याय है। प्रथम दो गणित से तथा शेष दो ज्योतिष से संबधित थे जिसमे बीजगणित तथा अंकगणित प्रमुख है।

भास्कराचार्य ने सारणीया संख्या प्रणाली भिन्न, त्रैराशिक, श्रेणी क्षेत्रमितिय, अनिवार्य समीकरण जोड़ घटाव, गुना-भाग, अव्यक्त्व संख्या एवं सारिणी, घन, क्षेत्रफल के साथ साथ शून्य की प्रकृति का विस्तृत ज्ञान दिया। पायी का मान 3.14166 निकाला जो वास्तविक मान के बहुत करीब है। उनके द्वारा खोजी गयी तमाम विधियाँ आज भी बीजगणित की पाठ्यपुस्तको से मिलती है। ज्योतिष संबधी ज्ञान में उन्होंने ग्रहों के मध्य एवं यथार्थ गतिया काल, दिशा स्थान, ग्रहों के उदय, सूर्य एवं चन्द्रग्रहण विशेषत: सूर्य की गति के बारे में महत्वपूर्ण खोजे की।

अपने सूर्यसिद्धांत में उन्होंने समझाया था कि पृथ्वी गोल है जो सूर्य के चारो ओर निश्चित परिपथ पर चक्कर लगाती है। भास्कराचार्य ने ग्रहों की गुरुत्वाकर्षण शक्ति संबधी तथ्य बताये। उन्होंने गोले की सतह पर घनफल निकालने की विधि भी बताई। आँखों के सहारे रात भर जाग जागकर उन्होंने गणना के आधार पर सूर्योदय, सूर्यास्त, गुरुत्वाकर्षण संबधी जो तथ्य संसार के लिए दिए वो प्रशंशनीय है।

उनके ग्रन्थ लीलावती का अनुवाद फैजी ने फारसी में तथा 1810 में HT कोलब्रुक ने अंग्रेजी में किया। उनके सिद्द्धंतशिरोमणि का अंग्रेजी में भी अनुवाद किया गया। गणित तथा खगोल विगयान के क्षेत्र में भास्कराचार्य का स्थान युगों तक अमर रहेगा। भास्कराचार्य की महत्वपूर्ण देन विज्ञान को अन्धविश्वासो से बाहर निकालकर नई सोच, नई दृष्टि देने की थी। गुरुत्वाकर्षण की खोज करने वाले वे संसार के प्रथम वैज्ञानिक है किन्तु इसका श्रेय न्यूटन को ही दिया जाता है। ऐसे महान वैज्ञानिक का देहावसान 65 वर्ष की आयु में ही हो गया।

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भास्कराचार्य ने गणित में क्या योगदान दिया?

गणित को इनकी सर्वोत्तम देन चक्रीय विधि द्वारा आविष्कृत, अनिश्चित एकघातीय और वर्ग समीकरण के व्यापक हल हैं। भास्कराचार्य के ग्रंथ की अन्यान्य नवीनताओं में त्रिप्रश्नाधिकार की नई रीतियाँ, उदयांतर काल का स्पष्ट विवेचन आदि है। भास्कर को अवकल गणित का संस्थापक कह सकते हैं।


भास्कराचार्य ने क्या खोज की थी?

न्यूटन से ५०० वर्ष पूर्व ही महान भारतीय गणितज्ञ, ज्योतिषी एवं खगोलविद्, भास्कराचार्य ने गुरुत्वाकर्षण की खोज व संपूर्ण सैद्धांतिक अवधारणा प्रस्तुत कर दी थी. इनका जन्म १११४ ई. में, दक्षिण भारत के एक गाँव में हुआ था। उन्होंने ज्योतिष, खगोल व गणित का ज्ञान अपने मनीषी पिता से प्राप्त किया था.

भास्कराचार्य ने गुरुत्वाकर्षण की खोज कैसे की?

एक अन्य प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री भास्कराचार्य द्वितीय (लगभग 1114 – लगभग 1185) ने अपने ग्रंथ सिद्धांत शिरोमणि के गोलाध्याय (गोलाकार पर) खंड में गुरुत्वाकर्षण को पृथ्वी की एक अंतर्निहित आकर्षक संपत्ति के रूप में वर्णित किया है : आकर्षण की संपत्ति पृथ्वी में अंतर्निहित है।

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