बिजली : आधुनिक जीवन की रीढ़ Best Bijli Essay In Hindi

Bijli Essay In Hindi आज बिजली के अभाव में एक पल भी बिता पाना कष्टकर हो जाया करता है। बिजली! हाय बिजली! एक क्षण के लिए भी यदि कहीं बिजली गुल हो जाती है, तो चारों तरफ हाय-तोबा मच जाती है। लगता है, जैसे तेज गति से भाग रही गाड़ी को अचानक ब्रेक लग जाने से वह एक झटके के साथ रुक गई हो।

Best Bijli Essay In Hindi

बिजली : आधुनिक जीवन की रीढ़ Bijli Essay In Hindi

सभी लोग एकदम बेकार-बेबस! कमीजों, बनियानों को सहलाते-उछालते हुए ठंडी या गरम किसी भी प्रकार की हवा के एक झोंके के लिए तड़पने लगते हैं। छोटे-बड़े ठप्प कल-कारखाने, फैक्टरियां, खराद, दुकानें, दफ्तर और घर सभी जगह काम-काज ठप्प और विद्यूत-विभाग की खरी-खरी आलोचना आरंभ। यह है बिजली के अभाव में आज के जीवन की स्थिति और विषम गति-दशा। गर्मियों का आरंभ होते ही प्राय: सारे देश में इस प्रकार का अनुभव किया जाने लगता है।

सचमुच आज सारे वैज्ञानिक व्यावसायिक और व्यावहारिक संसार का जीवन बिजली की रीढ़ पर ही टिका हुआ है। मौसम सर्दी-गर्मी या कोई अन्य कुछ भी क्यों न हो, आज का जीवन बिजली के अभाव में एक कदम भी नहीं चल सकता। बिजली जहां एक झटके में मानव के प्राण ले सकती है, वहीं प्राणदान और रक्षा के लिए भी आधुनिक चिकित्सा-विज्ञान उसके झटकों का भरपूर प्रयोग करता है। ऑपरेश-थिएटर हो या फिर रोगी देखने एंव औषधि-वितरण-कक्ष, बिजली तो रहनी ही चाहिए। शहरी जीवन ही नहीं, आज ग्रामीण जीवन भी बिजली के अभाव में अपने को लंगड़ा-लूला अनुभव करने लगा है। पहले ग्रामीण लोग ज्यों-त्यों कर समय काट लिया करते थे। अपने सभी प्रकार के दैनिक कार्य फिर चाहे वह कृषि-कार्य ही क्यों न हो, निश्चिंत होकर कर लिया करते थे।

रात को घरों में सरसों-मिट्टी के तेल का दीपक टिमटिमाकर उजाला कर लिया करते थे। परंतु आज? इस ग्राम-विद्युतिकरण की प्रक्रिया ने वहां के जीवन के मानव-मूल्यों, सांस्कृतिक चेतनाओं को भी एकदम बदलकर, परावलंबी बनाकर रख दिया है। अन्य कोई कार्य तो क्या, वहां की धर्मशाला में भी आज बिजली के अनुभ्ज्ञव में आरती-पूजन नहीं हो पाता। ट्यूबवैल न चलने से खेत सूखे रह जाते हैं और फसलें अनबोई रह जाती है। कटाई-निराई तक संभव नहीं। वहां के परिश्रमी और स्वावलंबी मनुष्यों को भी बिजली ने आज पूरी तरह से अपना गुलाम बनाकर, अभाव में निकम्मा और बेकार करके रख दिया। वहां का चेतनागत एंव सक्रियता से संबंधित संसार ही बदल दिया है।

नगरों की दशा और भी विचित्र है। वहां कई-कई घर तो ऐसे भी हैं कि जहां बिजली के अभ्ज्ञाव में खाना तक बन पाता संभव नहीं हो पाता। बिजली की अंगीठी से जो काम चलाया जाता है। फ्रिज, हीटर, कूलर, रेडियो, टेलीविजन, टेलीफोन यहां तक कि नलों से टपकने वला पानी भी तो बिजली के दम से ही आबाद है। भला जब वह ही विद्युत प्रदान विभ्ज्ञाग की कार्य-कुशलता की कृपा से कहीं लंबी यात्रा पर चली जाएगी, तो क्यों न आबाद नाबाद होने को विवश हो जाएगा?

याद करिए उस क्षण को, जब आप किसी थिएटर में बैठकर चलचित्र या नाटक आदि, अथव सांस्कृतिक कार्यक्रम तन्मयता से देखकर आनंदित हो रहे हैं, तभी सहसा बिजली गुल हो गई और आपके आस-पास बैठी महिलांए न केवल दहशत, बल्कि हॉल में बैठे तथाकथित सुसभ्य-सुसंकृत दर्शकों के अंधेरे में चलने वाले व्यापारों से पीडि़त होकर चीत्कार करने लगीं, तब कितना-कितना कोसा गया होगा आधुनिक जीवन की रीढ़ इस बिजली को। कितने-कितने सदवचन उच्चारे गए होंगे इस रीढ़ की संचालकों के प्रती। ये सभी अनुभव की बातें, जिनके वर्णन-ब्यौरे कई बार समाचार-पत्रों में भी पढऩे को मिल जाया करते हैं। स्पष्ट है कि बिजल ने मानव को उसके भीतर तक अपना गुलाम बना लिया है।

इस प्रकार व्यक्ति से लेकर समष्टि तक सारा जीवन और उसके सभी प्रकार के क्रिया-व्यापार आजकल प्राय: बिजली पर आश्रित हैं। आपने यह घटना भी कहीं जरूर पढ़ी या सुी होगी कि जब बिजली की कृपा से भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु को आधे घंटे भर या काफी समय तक लिफ्ट के बीच बंद होकर अधर में लटके रहना पड़ा था। भारत की बात छोडि़ए कि जहां हम प्रत्येक क्षण बिजली की आंख-मिचौनी से दो-चार क्षणों के लिए बिजली चली गई थी, तो वहां के राष्ट्रपति और सरकार को क्षमा-याचना करके लोगों के आक्रोश को शांत करना पड़ा था। हो भी क्यों न! जब किसी की रीढ़ पर ही वार हो, तो अमेरिका भारत तो है नहीं कि जो चुप रह जाए, या होहल्ले का कुछ परिणाम ही न हो। यहां हो न हो, वहां तो होता ही है।

व्यवहार के स्तर पर आज जीवन के अधिकांश काम बिजली पर आश्रित हैं। ट्रेनें, ट्रामें, ट्रॉलियां, लिफ्टें, पंखें, कूलर, फ्रिज आदि की बात तो जाने दीजिए, आज का जीवन बिजली के अभाव में दिन के चौड़े प्रकाश में भी अंधा बनकर रह जाता है। सारे काम, सारी गतिविधियां जहां की तहां स्थगित होकर रह जाया करती हैं। ठीक भी तो है, जब रीढ़ ही ठीक न होगी, सीधी न रह पाएगी, तो शरीर किसी काम के लिए खड़ा ही कहां हो पाएगा? क्या हमारी तरह आप भी महसूस नहीं करते कि भारतीय विद्युत प्रदाय विभाग हम आदमियों के साथ-साथ देश की भी रीढ़ को तोड़-मरोडक़र रख देने पर तुले हुए हैं।

यहां जो भ्रष्टाचार और निहित स्वार्थों वाली मानसिकता काम कर रही है, निश्चय ही वह स्वतंत्र भारत के माथे पर एक गहरा काला धब्बा है। प्रकाश की छाया में पनपता अंधेरा, गहरा काला धब्बा यानी कलंक। ऐसी स्थिति में यदि कुछ लोग अपने ही इस विभाग की ‘बड़ी कुत्ती शै’ कहते हैं, तो सच ही कहते हैं। आश्चर्यचकित होने की कतई कोई बात नहीं।

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हमारे जीवन में बिजली का क्या महत्व है?

हम बिजली के बिना एक पल भी नहीं रह सकते हैं। चाहे हम घर में हों, स्कूल में या फिर किसी मॉल में, हर जगह इलेक्ट्रिसिटी का ही सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है। सोचो, अगर लाइट नहीं होती तो हमारी जिंदगी कैसी होती? न कंप्यूटर होता ना मोबाइल, ना ही बल्ब और पंखे

बिजली के बिना जीवन कैसा होगा?

आपके फ्रिज या फ्रीजर का उपयोग करने के लिए कोई बिजली नहीं होगी, टेलीफोन लाइनें बंद हो जाएंगी और फोन सिग्नल गायब हो जाएगा। बैकअप चार्जिंग विकल्प के बिना बैटरी खत्म होने पर आपके मोबाइल फोन बेकार हो जाएंगे। आपकी गैस सेंट्रल हीटिंग काम नहीं करेगी और आपकी जल आपूर्ति जल्द ही साफ पानी पंप करना बंद कर देगी।

बिजली का दुरुपयोग क्या है?

बिजली का दुरुपयोग / अनधिकृत उपयोग (यूयूई) ” कका क्या तात्पर्य है? उत्तर : बिजली की आपूर्ति जिसके लिए अधिकृत है, अगर उपभोक्ता उससे इतर आपूर्ति का उपयोग करता है तो उसे दुरुपयोग (यूयूई) के तौर पर माना जाएगा।


बिजली से आप क्या समझते हैं?

चल अथवा अचल इलेक्ट्रान या प्रोटान से सम्बद्ध एक भौतिक घटना है .किसी चालक में विद्युत आवेशों के बहाव से उत्पन्न उर्जा को विद्युत कहते हैं। विद्युत-आवेश के प्रवाह अर्थात विद्युत-आवेशित कणों के किसी निश्चित दिशा मे गति करने को ‘विद्युत-धारा’ कहते हैं ।

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