बतुकम्मा महोत्सव के बारे में जानकारी Batukamma Information In Hindi

हॅलो ! इस पोस्ट में हम बतुकम्मा महोत्सव के बारे में जानकारी लेने वाले हैं । भारत में बहोत त्यौहार मनाए जाते हैं । उन्हीं में एक बतुकम्मा नाम का त्यौहार हैं । यह त्यौहार तेलंगाना में मनाया जाता हैं । यह तेलंगाना का क्षेत्रीय त्यौहार हैं । बतुकम्मा महोत्सव को बठुकम्मा महोत्सव इस नाम से भी जाना जाता हैं ।

Batukamma Information In Hindi

बतुकम्मा महोत्सव के बारे में जानकारी Batukamma Information In Hindi

बतुकम्मा महोत्सव भादो माह के अमावस्या से शुरू होता हैं और नवरात्री के अष्टमी के दिन खत्म होता हैं ।अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह त्यौहार सितंबर या अक्टूबर महिने में मनाया जाता हैं ।‌ यह त्यौहार तेलंगाना की नीचे वर्ग के महिलाओं द्वारा मनाया जाता हैं ।

बतुकम्मा त्यौहार को फूलों का त्यौहार भी कहा जाता हैं । यह त्यौहार नौ दिनों के लिए मनाया जाता हैं । इस त्यौहार को मनाने के लिए बहोत तरह के फूलों का इस्तेमाल किया जाता हैं । बतुकम्मा महोत्सव में फूलों का इस्तेमाल करके अलग अलग तरह की आकृतियां बनाई जाती हैं । यह त्यौहार स्त्री के सम्मान के रुप में मनाया जाता हैं ।

बतुकम्मा का अर्थ क्या है –

बतुकम्मा इस शब्द का अर्थ माता पार्वती हैं । बतुकम्मा के रूप में माता पार्वती की पूजा की जाती हैं । मान्यता के अनुसार इन दिनों में देवी जीवित अवस्था में रहती हैं और लोगों की मनोकामना पूरी करती हैं । बतुकम्मा का अर्थ ‘ देवी मां जिंदा हैं ‘ यह भी हैं ।

बतुकम्मा त्यौहार क्यों मनाया जाता हैं –

1 ) वेमुल्लावाडा़ चालुक्य राजा राष्ट्रकुट राजा के उप – सामंत थे । एक बार चोल राजा और राष्ट्रकुट के बीच में युद्ध हुआ । इस युद्ध में चालुक्य राजा ने राष्ट्रकुट का साथ दिया । राष्ट्रकूट राजा के उप सामंत थेलापुध्दू द्वितीय ने 973 ई. में आखिरीकार राजा खुर्द द्वितीय को हरा दिया ।

इसके बाद उन्होंने आजाद कल्याणी चालुक्य राज्य का निर्माण किया । उस राज्य को अब तेलंगाना नाम से जाना जाता हैं । वैमुलवाडा के साम्राज्य के समय राजा राजेश्वर का मंदिर बहोत प्रसिद्ध था । तेलंगाना के लोग राजा राजेश्वर की बहोत ज्यादा पूजा और आराधना करते थे ‌।

एक बार चोल के राजा परान्ताना सुंदरा राष्ट्रकुट के राजा के साथ युद्ध में बहोत घबरा गए थे । उस वक्त उनको किसी ने बोला की राजा राजेश्वर उनकी मदद कर सकते हैं । इसके बाद राजा चोल राजेश्वर की भक्ती करने लगे । उन्होंने अपने बेटे का नाम भी राजा रख दिया । राजा राजा ने ई. 985 से ई. 1014 तक राज्य किया । उनके बेटे का नाम राजेंद्र चोल था । वह उनके सेनापति थे ।

सत्यासय ने एक बार हमला किया और उसको जीत लिया । इसके बाद उसने राजेश्वर जी का मंदिर तोड़ दिया । एक बड़ा शिवलिंग उपहार में उसने अपने पिता को दी । 1006 ई. में राजा राजा चोल ने इस शिवलिंग के लिए एक बड़े मंदिर का निर्माण किया । 1010 में ब्रिहदेश्वरा इस नाम से मंदिर की स्थापना हो गई ।

वेमुलवाडा़ से शिवलिंग को तन्जवुरू में स्थापित कर दिया । इस वजह से तेलंगाना के लोग बहोत ज्यादा दुखी हो गए । तेलंगाना छोड़ने के बाद पार्वती के दुख को कम करने के लिए बतुकम्मा महोत्सव की शुरुआत हो गई । उस वक्त से तेलंगाना में यह त्यौहार धुमधाम से मनाया जाता हैं ।

2 ) एक बार देवी गौरी ने एक बहोत बड़ा युद्ध‌ किया और उस युद्ध में देवी गौरी ने महिशासुर राक्षस का वध किया । इसके बाद देवी गौरी बहोत थक गई और गहरी नींद में चली गई । बहोत दिन लोगों ने प्रार्थना की । आखिरकार दशमी के दिन देवी गौरी नींद से जाग गई । उस वक्त से इस दिन को बतुकम्मा महोत्सव के रुप में मनाया जाता है ।

3 ) चोल शासक धर्मांगद और उसकी पत्नी सत्यवती ने एक युद्ध में अपने सौ बेटों को खो दिया । इसके बाद धर्मांगद और सत्यवती ने माता लक्ष्मी से उनके घर में जन्म लेने की प्रार्थना की । माता लक्ष्मी ने उनकी प्रार्थना सुन ली और उन्होंने धर्मांगद और सत्यवती के घर में जन्म लिया । माता लक्ष्मी ने जन्म लेने के बाद बहोत दूर से साधु संत उनके महल में पधारे और उन्होंने धर्मांगद और सत्यवती के पुत्री को माता बतुकम्मा कहा । उस वक्त से बतुकम्मा महोत्सव मनाया जाता हैं ।

बतुकम्मा त्यौहार कैसे मनाया जाता हैं –

बतुकम्मा त्यौहार को तेलंगाना में बहोत धुमधाम से मनाया जाता हैं । त्यौहार के पहले पांच दिन महिलाएं घर के आंगन को साफ करती हैं । महिलाएं त्यौहार के दिनों में सुबह जल्दी उठती हैं और अपने घर के आंगन में सुंदर रंगोली बनाती हैं । इस त्यौहार में चावल का आटा बनाकर उसकी रंगोली निकालने का बहोत महत्व होता हैं । इन दिनों में महिलाएं चावल के आटे से रंगोली निकालती हैं । घर के पुरुष बाहर जाकर अलग अलग प्रकार के फूल लेकर आते हैं ।

फूल आने के बाद महिलाएं उसकी अलग अलग तरीके की लेयर बनाती हैं । इस त्यौहार में बठुकम्मा बनाने की शुरुआत दोपहर से की जाती हैं । महिलाएं पारंपरिक साड़ी और गहने पहनती हैं और लड़कियां लहंगा चोली पहनती हैं । सब महिलाएं अपने बठुकम्मा लेकर आती हैं । नौ दिन महिलाएं और लड़कियां शाम के समय एकत्रित आती हैं और ढोल बजाकर इस त्यौहार को धुमधाम से मनाती हैं ।

सभी महिलाएं बठुकम्मा के चारों तरफ गोल बनाकर खड़ी रहती हैं और गीत गाती हैं । महिलाएं इन दिनों में परिवार के खुशहाली के लिए प्रार्थना करती हैं । इस त्यौहार में अलग अलग प्रकार के पदार्थ बनाए जाते हैं । महिलाएं और लड़कियां मिलकर यह पदार्थ बनाती हैं । त्यौहार के अंतिम दिन बठुकम्मा को पानी में विसर्जित किया जाता हैं ।

बतुकम्मा महोत्सव का महत्व –

बतुकम्मा त्यौहार तेलंगाना के नीचे वर्ग के महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण त्यौहार हैं । इस महोत्सव को स्त्री के सम्मान के रूप में मनाया जाता हैं । इस त्यौहार में बहोत प्रकार के फूलों का उपयोग किया जाता हैं । इसमें से कुछ फूल आयुर्वेदिक दृष्टी से महत्त्वपूर्ण भी होते हैं । वर्षा ऋतु में सभी जगहों पर पानी भर जाता हैं । वर्षा ऋतु में बहोत फुल खिलने लगते हैं । इसलिए प्रकृती को धन्यवाद देने के लिए भी यह त्यौहार मनाया जाता हैं ।

इस पोस्ट में हमने बतुकम्मा महोत्सव के बारे में जानकारी ली । हमारी पोस्ट शेयर कीजिए । धन्यवाद !

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बतुकम्मा कहाँ का त्यौहार है?

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बतुकम्मा त्यौहार के बारे में आप क्या जानते हैं?

बतुकम्मा तेलंगाना का एक रंगीन और जीवंत त्योहार है। यह महिलाओं द्वारा मनाया जाता है, फूलों के साथ जो प्रत्येक क्षेत्र में विशेष रूप से उगते हैं। यह त्यौहार तेलंगाना की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। बतुकम्मा मानसून के उत्तरार्ध के दौरान, सर्दियों की शुरुआत से पहले आता है

बतुकम्मा की शुरुआत कैसे हुई?

देवी लक्ष्मी ने उनकी सच्ची प्रार्थना सुनी और उन्हें स्वीकार करने का फैसला किया। जब लक्ष्मी का जन्म शाही महल में हुआ, तो सभी ऋषि उन्हें आशीर्वाद देने आए और उन्होंने उन्हें अमरता “बथुकम्मा या सदैव जीवित रहने” का आशीर्वाद दिया। तब से तेलंगाना में युवा लड़कियों द्वारा बथुकम्मा उत्सव मनाया जाता है।


तेलंगाना में बथुकम्मा कैसे मनाया जाता है?

महिलाएं और लड़कियाँ पारंपरिक रूप से तैयार होती हैं और एक साथ इकट्ठा होती हैं और बथुकम्मा के चारों ओर एक घेरा बनाती हैं और लोक गीत गाकर और फूलों की व्यवस्था के चारों ओर नृत्य करके जश्न मनाती हैं। फिर महिलाएं बथुकम्मा को अपने सिर पर लेकर जुलूस के रूप में एक जलाशय की ओर बढ़ती हैं। जुलूस बेहद चमकदार है.

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